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पडलु दिहममुडणवणयंडविमल कंघिउकुवरिहिणवधरलएण करुधरिउणातिटिणकरण कळाहियेणसिंगारुलेविपालिजसुधवलडिरहणेवाताजपाणितूतासुकरे विविहार सासाईचियर यंतणमुगालचालपिल मोहमदातरूसिचिवमाया कमसियसेविहे जसवश्देविड़ावरहोत्राणदही अवियसगदहा लावणेसावरगलम्गातिरिछा महिणाय डिखलिममल पिमनेहाकरियविरतिणावश्यसुहासदियश्सरति चित्ताचितिमिलियाई कम गमवरणसलिलेसलिलम कमणीयकामिणीवडणेह गियतपडिविचिदश्यदद।। दिहउपडितकासंकियादितंकहवकहवखुशिबयियार्हि एवणवाङ्मयकतरुणि वारणानुए
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उन्होंने मुखपट खोला, मानो मेघपटल उघाड़ दिया हो, उन्होंने मुँह देखा मानो पूर्णचन्द्र देखा हो। नव वर में जिसका स्नेह निबद्ध है ऐसे प्रिय के देह में उन्होंने अपना रूप प्रतिविम्बित देखा। शत्रुपक्ष की आशंका के भय से कुमारियाँ काँप गयीं। स्नेह के ऋण के कारण उन्होंने उनका हाथ पकड़ लिया, कच्छ के राजा रखनेवाली प्रियाओं ने बड़ी कठिनाई से उसे समझा। उन्होंने एक हाथ से एक तरुणी को उठा लिया और ने भंगार लेकर और यह कहकर कि धवल आँखोंवाली इनका पालन करना।
दूसरे से दूसरी तरुणी को। दोनों को लेकर स्वामी निकले, मानो लताओं से सहित कल्पवृक्ष हो। सैकड़ों ____घत्ता-जो उनके हाथ पर पानी छोड़ा उसने विविध आशाओंरूपी शाखाओं से सहित, और मनरूपी आशीर्वादों से संस्तुत, विश्व के एकमात्र सूर्य, वह उत्पन्न कामरस से परिपूर्ण वधुओं के साथ बैठ गये। क्यारी में स्थित मोहमहावृक्ष को सौंच दिया॥१३॥
घत्ता-दूसरे ग्रहों के साथ अग्नि जिनके चरणों पर गिरता है और धरती पर लौटता है, वही वर कुल
की शान्ति करनेवाला है, होम करने से तो केवल धुआँ उत्पन्न होता है॥१४॥ उसने कहा-'लक्ष्मी से सेवित यशोवती देवी और अनिन्द्य सुनन्दा देवी का वरण करो।' उनके नेत्रों
१५ से तिरछे नेत्र इस प्रकार लग गये मानो जैसे मत्स्यों से मत्स्य प्रतिस्खलित हो गये हों, प्रिय के स्नेह से भरी यद्यपि वह विघ्नों को नष्ट करनेवाले और जग की रक्षा करनेवाले थे, फिर भी उन्होंने सीमित (मर्यादित) हुई उनकी आँखें इस प्रकार फैलती हैं जैसे कानों के विवरों में प्रवेश करना चाहती हैं। चित्तों से चित्त इस आचरण किया। देवों और असुरों द्वारा जिनके गीत गाये जा रहे हैं, जिनपर चंचल चमर ढोरे जा रहे हैं ऐसे
प्रकार मिल गये जैसे गजवर से गजवर और नदियों के जल पानी (समुद्र) में मिल गये हों। सुन्दर स्त्रियों वे रमणियों के साथ तब तक बैठे जब तक सूर्य अस्ताचल पहुँच गया। Jain Education International
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