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हिरामणसंगामधुत्रण सविता रायदा राजयहास,
Oदेवादिदेवस्मानणाला परण
इंचारपद्दसिरसडासाविसह
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000000000 प्रदेवरसेनाप तिलिच्कराजासा धनकासरावा भातालकरिव ढिठा
रवरहं पवनलहरह।। वातासालदमदासजरकाम
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Kडगखएकान्तकुठार रविरश्यगंधवाहपालनासलिला
तब रमणियों के लिए सुन्दर संग्राम में चतुर-देवाधिदेव के पुत्र भरत ने क्रुद्ध होकर
घत्ता-शत्रुपुरुष के लिए अजेय जय का वीरपट्ट (राजा ने) स्वयं बाँध लिया, मानो विषधरवरों और नवजलधरों पर युग का क्षय करनेवाला कृतान्त ही क्रुद्ध हो उठा हो॥११॥
तब सोलह हजार यक्षामरों के द्वारा विरचित पवनों के द्वारा मेघ उसी प्रकार नष्ट हो गये,
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