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मरथचक्रत्रि कल सेन्यु लडतू दिमंत्री घर से योधनं ॥।
★ मुवि से इस रिया । बडियचा बई उज्ञारिया इं । तेलि मुणेविरहसाऊरिया । वजेत तरवार या वलमशिजोभूयश्वाण त हो हो सरिस हहोतणित चाण तखिविधाराय हसिया
खग्न पंडिवारेनि नसमात निसुणे निहंग घाणा निम्मुश्कवयनि पातंनिधिमयमायगरुद पडिगय वरगंधा लुइकड निणे निमञ्चरताव करिय हरिपुरुकरंतानंत धरित रहरना चिय कहियपनदोह नारियक्तियो
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यजोहता। परिसेसियरण परियहणं गुरुवरण चरणसहसलिशि से इन िशा कजयलाई कईकुडेनाश्या लिहिया ना पण मिय सिरेहिमना। लिय करेदि वा वलि सरडमडररकरदि उन मिडरो। सुपरमतपदि विभिनिविष्म विम महंतपहिं हवि
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" दोनों सेनाओं के बीच जो बाण छोड़ता है, उसे श्री ऋषभनाथ की शपथ।" यह सुनते ही सेनाएँ हट गर्यो और चढ़े हुए धनुष उतार लिये गये। यह सुनकर हर्ष से आपूरित बजते हुए तूर्य हटा लिये गये। यह सुनकर धाराओं का उपहास करनेवाली तलवारें म्यान के भीतर रख ली गयीं। यह सुनकर चमकते हुए सघन कवच- निबन्धन खोल दिये गये। यह सुनकर मतवाले प्रतिगजों की वरगन्ध से लुब्ध और क्रुद्ध गज अवरुद्ध कर लिये गये। यह सुनकर ईर्ष्याभाव से भरे हुए फड़फड़ाते हुए अश्व रोक लिये गये। रथ रह गये, लगाम
बाइबलिक मंत्री संबोधन
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खींच ली गयी। बेधते हुए अनेक योद्धाओं को मना कर दिया गया।
घत्ता - युद्ध की साज-सामाग्री को दूर हटाती हुई, गुरुजनों की शपथ से रोकी गयी दोनों सेनाएँ कलकल शब्द को छोड़कर इस प्रकार स्थित हो गयीं जैसे दीवाल पर चित्रित कर दी गयी हों ॥ ८ ॥
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अपने सिरों से प्रणाम करते हुए, दोनों हाथ जोड़े हुए, उत्पन्न होते हुए क्रोध को शान्त करते हुए मन्त्रियों ने मधुर शब्दों में दोनों से निवेदन किया
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