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सरथ वक्र वलह करणे।
वरोप्यपदिडिधरई मापा लय नप-चल करह बाजहंसा वलिमाणियण अवरोप्यरूपं चपा पिए) ट्राइवर हे तावदेव का करू धित सुरेदतिजेा ब्रश हविनिविनियम स्मिता केला वीराणरुजिविपरक मेमेणिर्विकमेण । त सो दा हसिमपुर देग है नार्चितिउदो हिंमिसुंदरहिं किंद्रेह वियदेव किंफल्लियाणवि कडुय वषेण किसलिलें चंडालं किरण किंवा पेण संकिरण कियांगुरुपडि कूलया। सुविष्णा यसर सिरसा जपण करतिसुद्धा सिलाई मतिहिासिया सवय वाहनारदह रिडिक हिं कहिसिंहासन राई । यतिनिनिमंतिमंत्र द्वाणु गामिण से अवलंवि उरो सुपरियपदि श्रायैव कसियलोयणेहि सकाया दोहिमिवो इ एकमेक नहा पणु पडतुम वलिदे मुंडू पेरकेविरविदिद्वय किरणचंड हिनदिनिवरिलियाय पि
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पहला - एक-दूसरे पर दृष्टि डालो, कोई भी अपने पक्ष्म की पलकों को न हिलाये दूसरा- हंसावली के द्वारा सम्मानित पानी के द्वारा एक-दूसरे को साँचो; तीसरे आकाश में देवता देखते हैं और जिस प्रकार ऐरावत सूँड को पकड़ता है, आप दोनों राजमल्ल तब तक मल्लयुद्ध करें कि जबतक एक के द्वारा दूसरा हरा न दिया जाये। पराक्रम से एक दूसरे को जीतकर पराक्रम से कुलगृह - श्री को ग्रहण करें। " तब अपने शरीर की शोभा से इन्द्र का उपहास करनेवाले दोनों सुन्दरों ने अपने मन में विचार किया कि अनिष्ट करनेवाले नवयौवन से क्या? फले हुए कडुबे बन से क्या ? चाण्डाल से अलंकृत जल से क्या ? आदेश से शंकित रहनेवाले दास से क्या गुरु से प्रतिकूल और अत्यन्त विनीत सुजन शिर को पीड़ा पहुँचानेवाले राजा से क्या ?
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घत्ता - जो मंत्रियों के द्वारा भाषित, सुभाषित और नीतिवचन नहीं करते उन राजाओं की ऋद्धि कहाँ, और सिंहासन, क्षेत्र एवं रत्न कहाँ? ।। १० ।।
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यह विचारकर उन्होंने मन्त्री की मन्त्रणा पसन्द की वृद्धाश्रित सबकुछ उत्तम होता है। लाल, सफेद एवं श्वेत लोचनवाले परिजनों ने क्रोध का आलम्बन नहीं लिया। कषायभाव से वे एक-दूसरे के निकट पहुँचे, दोनों ने एक-दूसरे को देखा। राजा भरत ऊँचा मुख किये बाहुबलि का मुख देखता है, जैसे किरण प्रचण्ड रविविम्ब को देखता है। ऊपर की अविचलित दृष्टि से
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