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कुजे समण संघाडस मिर्हितिज, जाणेपिणु इसमका लगइ उपसिविपुल्लय तकियान जा दिनरमंड खुढ किन सँमहार्दवखरउणिवा स्थिन जोहिहन सरकन देखत रुसारिदिंदु वखिल घियपि वजई। हो हिंतिकलन पर एयर किस काईदि उस डिडितिपुर काणा यदी रावल घरे जेघरे हाहितिमित वहिमवर पिपलवल पाय वरखइर।। दोहितिविड वागफल विरस हो हिंतिमुणिविवडा भरिस | छत्ता निर्देनिहनिपुजेर वयम्पुसम १८८
उससे एक भी श्रमण विचरण नहीं करेगा। यति लोग दुषमा काल की गति जानकर समूह में विचरण करेंगे। जो तुमने स्वप्न में दिनकर मण्डल को ढँका हुआ देखा है, वह मेघों से अन्धकारमय है, और केवलज्ञान सामने से हटा लिया गया है और जो तुमने सूखा पत्र पुष्प फलरहित वृक्ष देखा है वह नर-नारियों का दुश्चरित का भार है। पुत्र पिता के वचनों का उल्लंघन करनेवाले होंगे। स्त्रियाँ दूसरे में रति करनेवाली होंगी।
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दूसरे लोग कुछ भी किया हुआ सहन नहीं करेंगे, कुमारीपुत्र, दीन और खल घर-घर में होंगे। मित्र वैर निकालनेवाले होंगे। पीपल, बबूल और खदिर (खैर) वृक्ष होंगे एकदम विरस मुनि भी कषाय बाँधनेवाले होंगे।"
घत्ता - जैसे-जैसे भुवनकमल रवि जिन कहते हैं और वचन
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