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या निरंकुसनामधमलंग पाणसरस्मरित्रिणनिमाविसकरवटिसाकरिडम फोगातया
यवपिहनकृन्तगादयरिकवणेयररुपाया लियुकेचियकरफणिददरीकहसापालाण
लिंद सहयमाणिणिमायामण्ण राम रसंगरलहजयण सुरिंदकरकथाग्लुएगाया जिंदजिर्णिदसुपरसुराण पडाकएणकर परताविपरणथिरणधरणकमाविधिनाखर मगनसमहति मायतियविर्णिसिक्षियकदका
कमळाकाळहलेण किन्नसुरंदरणगिरिमंदर स्मथवाइबलि
सारपानहटिसमुणसुसुकिमलायरणनय मनिजकरण
मर्दसूनसुदपरिणामजामनघुनस्थापसमूह
सकश्क नमणिवरमाही चाविसयामोगर वरिंदणाणयुगगयणावियोखाललाय वाचण्यकरमणाणकामुयसकामचारु गसो १०६
पत्ता-कुमार ने राजा को उसी प्रकार उठा लिया, जिस प्रकार नागों की स्त्रियों (नागिनों ) से जिसकी गुफाएँ सेवित हैं, ऐसे मन्दराचल को अपनी इच्छा के कुतूहल मात्र से इन्द्र ने उठा लिया हो॥१५॥
तथा निरंकुश हैं, जैसे मदान्ध महागज हों। पैरों के भार से धरती उन्होंने नहीं छोड़ी। शब्द से दिग्गज दु:खी हो गये, फलों से उन्नत वृक्षों की पीठ छिन्न हो गयी, पक्षी आकाश में चले गये, वनचर खिन्न हो उठे, क्रूर नागराज वहीं संकुचित हो गये-चल नहीं सके, और भील घाटियों और गुफाओं में छिप गये। उस समय मानिनियों के मान और मद का हनन करनेवाले मनुष्यों और देवों के संग्राम में जय प्राप्त करनेवाले, ऐरावत की सैंड के समान बाहुवाले अनिन्द्य जिनेन्द्र और सुनन्दा के पुत्र ने प्रभु के हाथ को हाथ से पीड़ित कर दूसरे स्थिर हाथ से पकड़कर आक्रमण कर
मानो सुपुत्र ने अपने वंश का उद्धार किया हो, मानो कमलाकर ने राजहंस को उठा लिया हो, मानो शुभ परिणाम ने भव्य जीव को, मानो सुजन-समूह ने सुकवि के काव्य को, मानो मुनिवर स्वामी ने व्रत विशेष को, मानो किसी श्रेष्ठ राजा ने देश को, मानो गमन व्यापार ने बालसूर्य को, मानो पवन ने चम्पक कुसुम की धूल को, मानो कामशास्त्र ने कामाचार को,
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