________________
हरियासणधवलचमस्जयल पजेमछमणोहरूदीसञ्चफलिपंडालतवसमंदावकाश घायणियजपणमरणविष्टुमरमसँसमसाउनयतिमिदेवदेसजसञ्चरवरिया संवोहंडास
वडरिया पायपोमयारियासचंदणुलूमिलमंचसुनंदाणंदणु गउकेलामहोपावपरम्मुर्कसम वसरणेणियतामहासम्मुकं आसामनपसमुपसमियाकलि देनसमादिवोहिमुदानुशवलिाचार्य रणाणललेसंवहन पनहेपरणारायणेदिहउ उशापयरिसरङपाहा नखमाणहखिोढवज्ञा हावीतहिजयवजणिहायटिंगाश्यणायचतुरूगयहि दरिसियमणिरिद्विविदोयहिं उस सिरलाणविणायहिं मंडलियहिखडियसविवरूहि अहिसिंचिठमगलघडलकहिायता। चनसहिसरीवलकादविजाग्रणियहो जंपिदिललहसारहपरवशतवखसरहाण दिहाशिवतततवणायपहासरू सासनासुधकुलनामा बहरिसहणारायणिवहाउस मचर्रसुवाणुरुशिलाप्पुष्पपहावें अनुत्नुबिलहा दंडविमहिमटलुसिवादोमितीससह सासदेराद दोसबरिसुखरहपनासह पावणतिदोषासहसहसयपाउडदालसहल सखरसालहताशेपउत्तरं चोहदसंवाहणदणिरुवश्कलवकणिसलरसारिखसामक पवार
घत्ता-पद्यासन चपल चमरयुगल एक ही सुन्दर छत्र जो ऐसा दिखाई देता है मानो तपरूपी नदी में इन्दीवर और रम्भा के नृत्य-विनोदों के साथ एकत्रित हुए राजा के पक्षसमूहों के द्वारा लाखों मंगल-कलशों से उसका हो ॥१२॥
अभिषेक किया गया।
घत्ता-अनिन्द्य शरीर पर चौंसठ लक्षण और बहुत-से व्यंजन चिह्न थे, जो समस्त भारत-नरेश्वरों का जन्म और मृत्यु के प्रेम और भय को नष्ट करनेवाले भावों में उत्पन्न होनेवाले अन्धकार को शान्त करते बल था, उत्तना बल अकेले भरतराज के पास था॥ १३॥ हुए, एकदेशचारित्र और सकलदेशचारित्र प्रदान करते हुए, भव्यरूपी कमलों को सम्बोधित करते हुए, चरणकमलों में इन्द्र को झुकाते हुए, सुनन्दानन्दन पाप से पराङ्मुख बाहुबलि भूमि पर विहार करते हुए कैलास जिसका रंग तपे हुए स्वर्ण और सूर्य के समान था, जिसका शासन चक्र और लक्ष्मी की शोभा धारण पर्वत पर गये। अपने पिता के समवसरण में सम्मुख बैठे हुए पाप को नष्ट करनेवाले हे बाहुबलि! मुझे ज्ञान करता था, जिसका शरीर वज्रवृषभ नाराच बन्ध और समचतुरस्र संस्थानवाला तथा कान्ति से समृद्ध था। पुण्य
और समाधि प्रदान करें। तब भाई को ज्ञानलाभ (होने) से सन्तुष्ट और नर-नारीजन के द्वारा देखे गये भरत के प्रभाव से उसने अतुल को प्राप्त कर लिया और छह खण्ड धरती भी सिद्ध हो गयी। साठ हजार सुदेश ने अयोध्या नगरी में प्रवेश किया और अपने वक्षःस्थल के समान ऊंचे सिंहासन पर बैठ गया। बजते हुए थे, बहत्तर हजार श्रेष्ठ नगर थे। निन्यानवे हजार द्रोणामुख गाँव थे और अड़तालीस हजार पट्टन थे। सोलह जय-विजय वाद्यों, गाये जाते हुए नारद-तुम्बुरु के गीतों, दिखाये जाते हुए धरती के ऋद्धि विभागों, उर्वशी हजार खेड़े और निश्चित रूप से संवाहन, धान्य के अग्रभागों के भार से दबे हुए क्षेत्रवाले छियानवे
363
Jain Education International
For Private & Personal use only
an.org