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सरभचवचि
मालगा पन॥
पन्ना स्पिर सच्चिन्त्रविर एपंचसरा आणि सालोयणनडूमाणसर दृढवंसचेरघरेसासरल विवजिए ग्रहसर अपरिग्नदेकजण जसुत्तसर अणुमायासिक पद्दज़िसर प्यारह सर हयमयण सर उद्दिश्चायका रिहविधिया यदियवर सम्मिदिय, तलू जेणघोसे तिजप वलण कुलसंठि उतणक्षण | घत्रा चिरुस जेमाणुस गुण। इन रिसहें खन्नुपर्वितिर जिपमुजाथा धम्म दि यार। शरहेणदिकर सोनि (वणि दाणिजाखडा पियड किसियर इलाख लागि सो
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प्रोषधोपवास करने पर चार, सचित्ताचित्त से विरत होने पर पाँच, रात्रिभोजन के त्याग पर छह, दृढ़ ब्रह्मचर्य व्रत धारण करने पर सात, आरम्भ का परित्याग करने पर आठ और अपरिग्रह करने पर नौ, अनुमोदन छोड़ने पर दस, कामदेव को नष्ट करने और उद्दिष्ट का त्याग करने पर ग्यारह इस प्रकार राजा ने सुखपूर्वक ये द्विजवर बनाये। चूँकि वे व्रत द्वादशविध तप या ब्रह्म की जय घोषित करते हैं इसलिए उन्हें ब्राह्मण कुल में घोषित किया गया।
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पत्ता- और भी जितने मनुष्य नीति के वश में थे, ऋषभ ने उन्हें क्षत्रिय घोषित किया। भरत ने भी जिन की पूजा करनेवाले और धर्म का प्रिय करनेवाले को ब्राह्मण बना दिया ॥ ५ ॥
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वाणिज्य करनेवाला वणिक जाना गया, हल धारण करनेवाला कृषक कहा गया,
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