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मुत्रमजणदिपदिहि सिहमसिहोसदिविणामणानसखश्चहिविश्वहणामणासश माकरिकलदंतमयकशाहोहरिहणामअवद्धपाटह परखलुगयपहरणुसंगवहन बामसतोसियखलन हविर्जतिपयसकल नहयामसायरसारश्यासासूरएकादकंच प्पज उहणामकेवलकिरणरवि पाण्यहाँतिरायाठरविछिन्ना हाकलण्डस्मिविणठजणे वसवणतिजयणनुवक्किहए पुरतिभणारहगइसापुरनहातिदेवपईदिहए। श्या
विदेविप्लसरहमदियवाणिम्मिटापूरमजरो हिंतिथहिंसपचितियर कालणाकिमलापति मावि अंरकमिहनेंचढ़वलिहमिसिदिहहमसिविणाव लिह फलकामडारावाहिसंदङमहारचवहर हिपरमसरणाहणारदसमस्तुमणकणावरुद्ध ऊठसमाकपाडवकर जामसारहलूवलावा जश्कपावियासहाराणजवथालनुस्मणकपड़नवाया
अवलिमप्पएपवाहियदाणरक सुमणकणसदसुप पुप्पणकणसामप्यहहाहयठससठसामप्यन्हहाँ मणकेणपालियधिपत संशयास
तुम जनों के भाग्यविधाता पुरुषोत्तम हो। तुम सिद्धमंत्र और सिद्धौषधि के समान हो, तुम्हारे नाम से साँप तक नहीं काटता। तुम्हारे नाम से मतवाला गज भाग जाता है। पैर रखता हुआ भी सिंह मनुष्य से डर जाता है। इस प्रकार वन्दना करके, भरत (क्षेत्र) का अधिपति भरत पूछता है-“हे परमयति, मैंने ब्राह्मणवर्ण तुम्हारे नाम से आग नहीं जलाती, गदा-प्रहरण से युक्त शत्रुसेना भय धारण करती है। तुम्हारे नाम से खल की रचना की है। वे भविष्य में समय के साथ अहिंसा की प्रवृत्तिवाले होंगे या नहीं? हे तीर्थंकर, बताइए? सन्तुष्ट हो जाते हैं, और पैरों की श्रृंखलाएँ टूट जाती हैं। तुम्हारे नाम से मनुष्य समुद्र तर जाता है। और क्रोध- आप केवलज्ञानी को मैं क्या बताऊँ? रात्रि में मेरे द्वारा देखी गयी स्वप्नावलि का क्या फल होगा? हे आदरणीय काम का ज्वर हट जाता है। हे केवलज्ञान किरणोंवाले रवि, तुम्हारे नाम से रोगातुर मनुष्य नीरोग हो जाते देव, कहिए और मेरा सन्देह दूर कीजिए? हे परमेश्वर नाभिराज के पुत्र, तुम किस पुण्य से अरहन्त हुए हो?
किस पुण्य से मैं चक्रवर्ती तथा भारतभूमि तल का विजेता हूँ? पर्वत के नितम्बतट को कैंपानेवाला बाहुबलि घत्ता-दुःस्वप्न नहीं फलता, और न अपश्रवण फलता है, त्रिभुवनरूपी भवन में उत्कृष्ट तुम्हें देख लेने किस पुण्य से बलवान् हुआ? किस पुण्य से दानरूपी रथ का प्रवर्तन करनेवाला श्रेयांस राजा उत्पन्न हुआ? पर मनोरथ सफल हो जाते हैं, और ग्रह भी सानुग्रह हो जाते हैं "॥८॥
किस पुण्य से सोमप्रभ के समान सोमप्रभ राजा का जन्म सम्भव हुआ? किस पुण्य से तुम्हारे सभी पुत्र विनय का पालन करनेवाले हुए?"
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