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सोगरवाधरण विरमणुपदंडासिवठा साविद्यानजेहिडिणलासिमला । सामाश्रयासर
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भोगोपभोग की संख्या निर्धारित की है। अनर्थदण्ड के आश्रय से जिन्होंने विराम लिया है और जिन्होंने जिनेन्द्र भगवान् द्वारा भाषित का विचार किया है।
घत्ता-सामायिक, प्रोषधोपवास, अतिथिपरिग्रह तथा काम-क्रोध का परिहार किया है ॥४॥
ऐसे उन ब्राह्मणों को भरत ने प्रतिष्ठित किया, और हाथ जोड़कर सिर से नमस्कार किया। उन्हें यज्ञोपवीत का चिह्न धारण करनेवाला बनाया। सम्यग्दर्शन धारण करने पर एक व्रत, पाँच अणुव्रत लेने पर दो व्रत निरूपित किये गये, सामायिक से युक्त होने पर तीन,
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