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सरथनक्रवति।
राणिविकमन/किंबहरतणारठिकुल्व किंहजश्कडाउपिकफल किंवज्ञश्लीरह्मिाझिया कि उहायडयणलनियम किंवाश्सलिलेरदिउधण किन्नजपखसजाविण किंछनातिहाख
बदक्षिणाघनाजिदिगुणपनदारागाधतह एहमवह यणपढयामणुशहोमलबंधणुतसंधियधणमुमहोपनाबा नगछाश पठण्डाविलवणुपरिहणातियविंडन माणिनघपाथपलाजवनालतंवासिकशवताविसास कतारधरणसीरसुदाणिकललकण अलउकलिउधाडेवि सजण असाखरलोडणधरविमणजबतिदाणगरुयदि वस रिणमममाणहिंडतिरोजाजपचकरविकरे। निवस्यूयफलुखतिक्षिदएछणविरविग्रहमानिहाय
चिदियळकावंचियालुवहिंप्यापनचियन सरचार नियासणफरुससिर दालिद्दियासधणविकिविषारोपवियापाश्छताणिसविनयहवहारमा हळुणपन्तिमश्वधश्मेलघुणवणुमवश्वसुगझपादिपरिहवरसाँसहिणधर शकिहतामिमा
क्या पुत्रविहीन कुल शोभा पाता है? क्या पका हुआ कड़वा फल शोभा पाता है। क्या भीर व्यक्ति की गर्जना द्रोणी अलसी का तेल है, ऐसा कंजूस व्यक्ति अपने लोगों को निकालकर रहता है। अपने मन में व्यापक शोभा पाती है? क्या वेश्या की लज्जा शोभा पाता है? क्या मृतक के आभूषण शोभा पाते हैं? क्या अविनीत लोभ धारण कर, वह बड़े भारी महोत्सव के दिन दीन की तरह खाता है। लोगों को प्रिय लगनेवाले पात्र का रूठना शोभा पाता है? क्या हिम से आहत कमलवन शोभा पाता है? क्या जलविहान घन शोभा पाता है? को हाथ में लेकर ऋण माँगता हुआ नगर में घूमता रहता है। अत्यन्त सड़ी हुई सुपाड़ी को वह इस प्रकार क्या दूसरों के अधीन जीव व मनुष्य शोभा पाता है? क्या तृष्णा रखनेवाले का धन शोभा पाता है। खाता है कि जिससे एक सुपाड़ी में ही सारा दिन समाप्त हो जाये । पाँचा इन्द्रियों के अर्थी से युक्त अपने को
पत्ता-बुधजनों का कहना है कि जो धन गुणवान् बुद्धिवान सुपात्र को नहीं दिया जाता मनुष्य का वह स्वयं लोभियों के द्वारा बंचित किया जाता है। पुराने कपड़ों का लँगोटी पहननवाले और कठार सिरबाले कंजस संचित धन पाप का कारण है और मरने के बाद वह एक पर भी नहीं जाता ।।१।।
लोग धनवान होते हुए दरिद्र होते हैं। वे पास आती हुई नियति को नहीं जानते। अपने हाथ में अपने हाथ
का विश्वास नहीं करते। वह बाँधता है, छोड़ता है, फिर बार बार मापता है। फिर धन को गुह्य प्रदेशों में (कृपण व्यक्ति) न नहाता है. न लेप करता है, और न वस्त्र पहनता है, सघन स्तनांवान ग्त्री समह रख देता है, वह साठ की संख्या पूरी नहीं होती उमे कैसे भरूं? का भी नहीं मानता। जिसके पास जी के डण्ठलीवाल नुष के भार से युक्त, कठोर कुलथी के कण और एक
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