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यणवीसविहांयसमाहीवाणपकवाससवलविणिरुणासहा सहेविडतीसंडसशपरीसहा ते वासविसमटश्यंतचउवासविलियातिळ होत चवीसलावणधरत चहासविदउँछ। यंदात सहवासजगुणसुत्ररतणवितेणमणिणालयवते अडवासणियाचनसमयावापक्या यारकपापादयविधातीसविड़कियसन्नतासमोठावलवतएक्कत्तासमलवायत्रण
निजिपनवएसक्तासमुणतं घना थिहरकत्राणार्कषित याश्चमकपणाहन उपाश्चकेवलम बहुबलिमुना पिवरण लामाला विदिहातासस्चखियसमजसरिद गरयासमागदासङ्खधरणिः परवश्या धम्कडकवण लज्ञानरत्यति।
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बीस असमाधिस्थानों, इक्कीस मन्द अपवित्र कार्यों और बाईस असाध्य परिसहों को सहकर। तेईस सूत्रकृतांग-सूत्र और चौबीस जिनतीर्थों में होते हुए, पच्चीस भावनाओं को धारण करते हुए, छब्बीस क्षेत्रों को देखते हुए, सत्ताईस मुनिगुणों को स्मरण करते हुए, अट्ठाईस मूलगुणों को अपने मन में समर्पित कर प्रवर आचारकल्प के प्रति अर्पित कर, उनतीस दुष्कृत सूत्रों, तीस बलवान् मोहस्थानों और इकतीस मल-पापों को नष्ट करते हुए और बत्तीस जिनगुणों का मनन करते हुए
घत्ता-स्थिर शुक्लध्यान की अवतारणा कर चार घातिया कर्मों को नष्ट कर दिया। मुनिवर को केवलज्ञान उत्पन्न हो गया और उन्होंने लोकालोक को देख लिया॥११॥
१२ तब देवेन्द्र के साथ देव चले। साँप धरणेन्द्र के साथ आये।
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