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रमलालसारसघरघरेजेक माणुस। रोसवं तहियपरविस्तर पाववडल पर सतर हामश्वद्ध कम्म परह से विस्यलाई दियई एक होनिमजा वहाकारणिण जावसयाइदि। बाहय । दचंदवदारयवद तर्दिश्रवसरेावलिमणिदे एक हाजी वह गुणमणेला विरा यदोस दामिविउडाविय तिन्निसिल दियउहरियई तिमिवियालससरियश तिन्तिविवे यमुक्कसंवें गारवतितिविवजियदेवें चकुम्भनिबंधापरमिट सम्पन चन्नारिविठवसमिय पंचमहला इंविदंड पंचासवदारा पिछडई पञ्चदियश्क याई निस्कर पंचविणारणावरण थकावासमासविससितं की तुझेदकाउपसा सिद्ध दलेसहपरिणाम वह छवि दनपरक इंदिह मनुयाई हया इग्दारे मन्त्रवित नाय धीरे श्रहनिमयनिहवियाइहें अ इसिगुणसरियवरिहें पवविदुर्वलचेरुपरिपालिन वपयपरिणामणिदा दि विडजिधम्मवियाणियन पारदाडिमन अविमारधी रहेमा वमहं वारदसिकुडपडिम ८८ ॥ १०) तेरह किरियाचा रामपिटाई तेरह लेमचरित्र ईगणिय वा दुर्गथम ला विसमुझिम चन्द्रद गामसखुशिम, पुष्पारद पमायमेत युष्मया व भूमि जाणतें सोलह विद कसाय समतें सो लहविद वनणे मरते श्रविजय संजमोह सञ्चार जाणैविसंपण्यश्रहा रह्। पानीसविणा हझ
की लालसा रखनेवाले खोटे मानुष घर-घर में हैं। क्रोधी, दूसरों का हरण करनेवाले, विष से भरे पापबहुल, पराधीन और अपने को भरनेवाले ।
उद्यम किया था। छह प्रकार के जीवों में दयाभाव प्रकाशित किया था। छहों लेश्याओं के परिणाम शान्त हो गये, छहों द्रव्य प्रत्यक्ष दिखाई देने लगे। गम्भीर उन्होंने सातों भयों को समाप्त कर दिया, उस धीर ने सातों घत्ता - हा! मैंने बहुकर्मों के परवश होकर विषयबलों को नष्ट नहीं किया और एक अपने जीव के लिए तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त कर लिया। सदय उसने आठों मदों का नाश कर दिया, उस वरिष्ठ ने आठों सिद्ध गुणों सैकड़ों जीवों का वध किया " ॥ ९ ॥ का स्मरण कर लिया। उसने नौ प्रकार के ब्रह्मचर्य का परिपालन किया, नवपदार्थ परिमाण को देख लिया। धत्ता-दस प्रकार के जिनधर्म को और अविकारी धीर श्रावकों की जड़मति को नष्ट करनेवाली ग्यारह प्रतिमाओं तथा मुनियों की बारह प्रतिमाओं को जान लिया ।। १० ।।
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उस समय इन्द्र, चन्द्र और देवों के द्वारा वन्दनीय बाहुबलि मुनीन्द्र ने एक जीव के ही गुण का चिन्तन अपने मन में किया। राग और द्वेष दोनों को उड़ा दिया। हृदय से तीनों शल्यों को निकाल दिया और तीन रत्नों (सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र्य ) को अपने मन में उत्पन्न किया। संक्षेप में उन्होंने तीनों प्रकार के दम्भ छोड़ दिये। देव ने तीन गौरव छोड़ दिये। चार गतियों और कर्मों के निबन्धन में रमनेवाली चारों संज्ञाओं को शान्त कर दिया। उनके पाँच महाव्रत अखण्डित थे और पाँच आस्रव द्वार नष्ट हो चुके थे। उन्होंने पाँचों इन्द्रियों को व्यर्थ कर दिया था और पाँच ज्ञानावरण की ग्रन्थियों को भी विशेष रूप से छह आवश्यकों में
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उन्होंने तेरह प्रकार के क्रिया स्थानों को समझ लिया और तेरह प्रकार के चारित्रों को गिन लिया, चौदह परिग्रह मलों को छोड़ दिया, प्राणियों के चौदह भेदों को जान लिया है। पन्द्रह प्रमादों को छोड़ते हुए पुण्य-पाप की भूमि को जानते हुए सोलह प्रकार की कषायों को शान्त करते हुए, सोलह प्रकार के वचनों में रमण करते हुए और भी सत्तरह असंयम मोहनीय, अट्ठारह सम्पराय मोहनीय, उन्नीस प्रकार के नाह ध्यान (नाथध्यान),
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