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समयबश्वासकारुकिंपिणासमिनश्शुयलहसुसमन्त्रणुममशविदिहातकरामञ्चवराय इलामकाहिंणमझदोदिसिक्कारविरकाहिमित्र असणुअलावारिसिंसारङ पणया सकसहरसहारउ वयसमिदिदियहरपलाउवि अवेलवपवासमझानवि पहाणविवजणमाय संसोवा दिनाधायएकमठिदिलायणपंतवणणिवसडकसम सदाचवस्थावजए रिश परमिविकरणिविनियामवरमलावशाय गम्चवरिवसुडमा महिावहस्खया उहवतक तदिथिउपक्वरिसुलवियका वेवावलयहिविढिउतरू जायचंगपनयहियसिंग उकडविणाउसरश्शारंगहि जासबळेफणिमणिपवगन वकासाविसदरहिहाराजायमा
वाडवलिमुना वरवसमध्येजा गधरण।
जयपपिकमठिमिलाउावचनदसपुचला
व्रत सत्कार वह कुछ भी नहीं चाहते। अशुभ और शुभ में वह समता भाव धारण करते हैं, विविध आतंक और रोगों की अवहेलना करते हैं, लोगों के द्वारा लगाये गये दोषों से भी वे मूच्छित नहीं होते। मुनियों में श्रेष्ठ अदर्शन और अलाभ (परीषह) प्रज्ञा परीषह भी वह आदरणीय सहन करते हैं। व्रत-समिति और इन्द्रियों का निरोध, केशलोंच, अचेलकत्व, वासयोग, स्नान का त्याग, धरती पर शयन, दाँत नहीं धोना और मर्यादा के अनुसार भोजन करना। ___घत्ता-वन में निवास करते हैं, सैकड़ों दुःख उठाते हैं, सहते हैं, बोलते नहीं, थोड़ा खाते हैं। सीमित नोंद लेते हैं, मन को जीतते हैं, वैराग्य की भावना करते हैं ॥७॥
इस प्रकार कठोर चरित का आचरण करते हुए धरती पर वे विहार करते हुए वन के भीतर प्रविष्ट हुए। वहाँ वे एक वर्ष तक हाथ लम्बे करके स्थित रहे। मानो लताओं के वेष्टनों से वृक्ष को घेर लिया हो। उनके अंग पर पैरों से सींग घिसते हुए हरिणों का खाज-खुजलाना होता है। उनके वक्ष पर नागमणि विराजित है, और बहुत से विषधरों से हार की तरह आचरण कर रहा (हार-जैसा लग रहा है)।
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