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अहिमाणिसावाल गलकलासुपरामयामाहाणणहा मतिविम्पिा
विकवणुपादनाम क्विनुनिकवणुमहादाजेगयतेसमलविमग्नविमिसुलावताउता दणावऽविसुतिकुणकारविदोमवहार वदणिशानुजगंगस्वारठशवहिंधरित्रपया। मिळार्दितादिमासहोतिपयनहिं तर्दिनवसेवळपाहिपिडिठ मंतिर्दिचिणासवाहिठा रखनसताणथवावमहाबलिगउकलासपराउनुयवालाधना वजनमुयसनरिदासारमहिमा अहिमाणिसाकेटहाराठधिसममय मंतिहिमडग्याणिडायपहाडगिखिरखाद्धबल्लास
अश्रापमा मियसाय णि
सरथचक्रवर्ति
अयोध्यात्राग हाणिहिम्यहा
मन। वायलिवला
पहठ दिहडत समिरिपवतया
हडकम्महन दिनाथपासिंग
दहाहरुह मन।।
पाविद्दहि हेहा
ऊहादाहिदाय हहिं जानदीसकुंठिसवामहिमसासिहिमवहिंसवायहि वदपुग्ननगहीरजयकारों
मेरा और तुम्हारा कौन-सा पराभव! मेरा-तुम्हारा कौन-सा महायुद्ध ! जितने भी लोग गये हैं वे बहाने की खोज करके गये हैं, उनको भोग ऐसे लगे जैसे विष हो। वहाँ भी तुम्हारा कोई दोष नहीं है, तुम जग में महान् और वन्दनीय हो । यदि इस समय तुम धरती की इच्छा नहीं करते तो जिसने तुम्हें यह दी है, वह उसी को दो।" उस अवसर पर मन्त्रियों ने मना किया, और भूमिनाथ को अपने शब्दों में सम्बोधित किया। महाबलि अपने पुत्र को परम्परा में स्थापित कर चले गये और कैलास पर जा पहुँचे।
पत्ता-नरेन्द्र श्री और धरती को छोड़ते हुए और बन को जाते हुए महान् अभिमानी विषण्णमन राजा भरत को मन्त्रियों द्वारा बलपूर्वक अयोध्या ले जाया गया॥५॥
यह कैलास पर्वत पर अत्यन्त दूर से सिर से प्रणाम करते हुए बाहुबलीश्वर ने निष्ठा में निष्ठ; अनिष्ट का नाश करनेवाले, दुष्ट आठ कर्मों के नाशक जिनवर को देखा। बड़ी-बड़ी दाढ़ों-ओठोंवाले क्रोधी और पापियों, अधोमुख बैठे हुए घमण्डियों, कुण्ठित प्रमाणवादियों और मांस खानेवाले, मद्य पीनेवाले चाण्डालों के द्वारा जो नहीं देखे जाते, ऐसे जिन भगवान् की शब्दों से निकलती हुई जय-जयकार ध्वनि करनेवाले कुमार ने स्तुति की
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