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मखमरामरमाणविमटोमण यमणयम्मलिणनंदप्पणअश्लवकमापियधणण
अवगलियसजणा यरियालियस वसंधण ताचिंतिउचकुसुकवरण दाढावलयोधणहरन उहाइट लुधिष्काचारविविवणवजियाव देउतपरियचिउवाडवलिदाथि
हिनुयदंडहोसमान कोण्हा बावलिनिसर
किर युवालायला
|णियुकुलपाखु कामुख्याधुतिचित्रा विलिनतरहणराहिवादावलीसुजगणपसंसिलगयणमा
-हिकोएनिपजगचछवाहा उसुस्वछियर्दिष्ायतपतिहिपहाशिलाहालाध्यमहाग गतिमाईमहापरिसरमालकारामहायुध्ययतविरश्यमहालक्तस्हाणुमसिंगाहाक बावल्हवाइलिशवमणणामसारमापरिननसमनीपाळावाठाशशधरविवाकोनि
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घत्ता-भरत नराधिप विस्मित हो उठा। बाहुबलीश्वर की विश्व ने प्रशंसा की। देवों के द्वारा बरसाये गये कुन्दकुसुमों की पंक्तियों से मानो आकाश का भाग हँस उठा ॥१६॥
या मानो उसी ने संसार के सार को उठा लिया हो। तब विद्याधर और अमरों के मान का मर्दन करनेवाले, अत्यन्त लोभी, धन को सब कुछ समझनेवाले, सज्जन की अवहेलना करनेवाले, समस्त धरती के पालक अच्छे कन्धोंवाले जिनेन्द्र के प्रथम पुत्र भरत ने चक्र का ध्यान किया। वह यम के दंष्ट्रावलय का अनुकरण करता हुआ चंचल और स्फुरायमान हो उठा और रबिबिम्ब के समान उसने विषम वेग को जीतनेवाले बाहुबलि के देह की प्रदक्षिणा की, तथा उनके दायें हाथ के पास जाकर स्थित हो गया। ऐसा अपने कुल का प्रदीप कौन हुआ है? सुरति में धूर्त चित्रों का अनुकरण करनेवाला कौन है? इस प्रकार विश्व में चक्रवर्ती को कौन जीत सकता है?
इस प्रकार प्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का भरत-बाहुबलि युद्ध-वर्णन नाम का
सत्रहवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ॥१७॥
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