________________
जिदिहिण्यविहलिया। पदोंतिकाइपंचमगई विसवासाविवमणिवरमणे णंतानसेसनाविडर इयासिलसितिगंगाणस्य कमलयंतिससियरतस्य कुमुलिवणवररवियररुयता दिला बहामुईचक्कवाणिजिउपडिडदिहिगडावहिंघल्लियगवडसमजालाहादातरवसचदेवा। दिशमनमनमायगलालावहारा रमावासवळलालविहारा फाणदाचदणदणदहा गुणा
दावरायासरतपम्हा सरतहिया जत्स्युडकराणव लाश्यसकनार विमापायाना लिवाजवला सारोतारं महापामसत्राहिमाणि कदिन मधूवतिगिविभूलादिलि
महारंगरंगतंकबालमाल मगर लापहालग्नलालामराल सिरीणेन गल्लावनचतमोरं सिसाहारट्रारंतची
चरंतरतामरंगेयमारहकाली जखवतमीणलयायननील ससीवादिसारंगडेवतसाद समगणावलौकन्नत्हें गुणतालिका
नीचे की दृष्टि जीत ली गयी, मानो होती हुई कुगति पाँचवीं गति से, मानो मुनिवरों की मति से, विषयाशा मानो, विट की रति से तपस्विनी और मानो गंगा नदी से पर्वत की दीवार भग्न हो गयी हो। मानो चन्द्रकिरणों की परम्परा से कमलपंक्ति, मानो रवि की कान्ति से कुमुदों की पंक्ति मुकुलित हो गयी हो।
घत्ता-प्रतिभट की दृष्टि के प्रभावों से पराजित चक्रवर्ती नीचा मुख करके रह गया, नव-कुसुमांजलियाँ डालते हुए देवों ने सुनन्दा के पुत्र बाहुबलि की संस्तुति की॥११॥
आन्दोलित हैं ऐसे वे दोनों राजा फिर सरोवर के भीतर प्रविष्ट हुए और उन्हें नागेन्द्रों, चन्द्र और इन्द्र ने देखा। प्रवेश करते हुए स्वच्छ नीर देखा, जो विशाल, गम्भीर और हिमकणों के समूह की तरह निर्मल था। हवा से उड़ती हुई पराग-धूलि से लिस था, जिसकी तरंगमाला भूमिरूपी रंगमंच पर क्रीड़ा कर रही थी, जहाँ लीला में हंस हंसनियों के पथ में लगे हुए थे, लक्ष्मी के नूपुरों के आलाप पर मयूर नृत्य कर रहे थे, जहाँ मृणाल के आहार से चकोर की चोंच भरी हुई थी, अमर तैर रहे थे, जिसमें सुन्दर क्रीड़ा प्रारम्भ की गयी थी, जल से मछलियाँ निकल रही थीं, जो लता पत्रों से नीला था, जिसमें चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब के हरिण पर सिंह झपट रहा था। उठती हुई फेनावली से तट ढके हुए थे, गूंजते हुए भ्रमरों का
मतवाले गजों की लीला का अपहरण करनेवाले तथा लक्ष्मी के निवासघरस्वरूप जिनके वक्ष पर हार
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org