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जिविजयलळिगेहा अविन्निनिजणवरमदेव अरविनिविखलियण्यान वाहविनि विर्गलारराव उमचिन्हिविजगधरणाम बम विस्मिविरामाहिगम अविस्पितिसर हमियमंड महिमहिलहेकण्वाउड उदशवपिविनिवणायकसैल णिटातापाय पको
रुहलसलावि पिविनणक्षणहाव कुश्क्वाश्रम्हाड
वाजवलिका धम्मपा
मित्रामत्रकर
रखरपंहर सरथचक्रवर्ति कउमंत्रीमत्रा
पक्षण्दारिएणर्कि किंकरणियमारिए ण किरकाश्वराएंद
डिएण सामतिणिस - रेडिपणा दोहभिकेरामशहावि आनहमेचविखमसाइलेविधिला अवलोयन्धाहना पनिठकिमन्सुहसुजन उदाहमिहीउरण विविवधमुणाणणनिम्तनापहिलय
मा
कथन।
"आप दोनों चरमशरीरी हैं, आप दोनों विजयलक्ष्मी के घर हैं, आप दोनों अस्खलित प्रतापवाले हैं, आप दोनों गम्भीर वाणीवाले हैं, आप दोनों विश्व को धारण करने की शक्तिवाले हैं, आप दोनों ही रमणियों के लिए सुन्दर हैं, आप दोनों देवों से भी प्रचण्ड हैं, आप दोनों धरतीरूपी महिला के बाहुदण्ड हैं। आप दोनों राजा के न्याय में कुशल हैं, आप दोनों अपने पिता के चरणरूपी कमलों के भ्रमर हैं, आप दोनों ही जनता के नेत्र हैं। इसलिए आप हमारे पक्ष को पसन्द करें। तीखे आयुधों की धार से विदीर्ण अनुचर-समूह के मारे
जाने से क्या? उन बेचारों को दण्डित करने और नारी समूह को विधवा बनाने से क्या? दोनों के बीच मध्यस्थ होकर आयुध छोड़कर और क्षमाभाव धारण करें।
घत्ता-हे राजन्, देखिए और युक्तियुक्त कहा हुआ इतना कीजिए-तुम दोनों में धर्म और न्याय से नियुक्त तीन प्रकार का युद्ध हो॥९॥
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