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वावाताचला शमराजा मेघे रसाधकरिश्यव शक्तिमा
वाहपीलविन चलयर हरिण णादेकाचच वरिमहा सडक्रिष्णा दवेंणाई दिसा वलिदिया। तंवलोदा वेग तय वसफणि गायघागय सासादार्माणि मेळ रिंदा हंस कुरुपुरुम्पन जीह हिंर्किकर पडिवपनं विमहरिया हा किरणत्रण वैकल्टी कगुण कितणु छिमे
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सिहिंकारी जनश्च
मिला सिहिं किंपरुयो सिजश्चर
विवाजिन
को जसुपाव शमि
जिस प्रकार चंचल हरिणों के स्वामी (सिंह) से गज नष्ट हो जाते हैं। चक्र से शत्रु महायोद्धा इस प्रकार छिन्न हो गये, मानो देव ने दिशावलि छिटकी हो। यह देखकर नाग डरकर भाग गये। नवधन चले गये और वह बिजली चली गयी। तब म्लेच्छ राजाओं ने करुणापूर्वक रोना शुरू कर दिया कि द्विजिह्नों ने यह क्या किया? जो विष से भरे होते हैं उनमें क्या सज्जनता हो सकती है? जो टेढ़ी गतिवाले हैं उनका क्या गुणकीर्तन ? छिद्रों का अन्वेषण करनेवालों से कौन प्रसन्न हो सकता है? जो हवा का पान करते हैं, उनसे दूसरों का क्या पोषण
घणघणणार अकाकि उसारा सिरिला चुंजिय
गर्द पिजेयावर रण नृपजन झूला पार्टी हरतरहा एम सियापा अहिं दिव्यहिरण वळ संघाया है दिहुरावा विजायादी १३१७०
उरथ चक्रचचि श्रावति दिलात राज्ञा सरकार मिला
होगा? चरण (चारित्र/पैर) से रहित कौन यश पा सकता है? नित्य भुजंगों (गुण्डों और साँपों) को नीचता ही आ सकती है। युद्ध के जीत लेने पर राजा घननाद गरजा, राजा ने घननाद को भी बुलाया। अपने सिरों के चूड़ामणियों से भूमि का भाग छूते हुए, दूर से पैरों में नमस्कार करते हुए, हिरण्य वस्तु समूह का दान करते हुए आवर्त और किरात राजाओं ने राजा से भेंट की।
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