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वसुविधउमाशपूर्णपणविजोगविज्यतेणमाएविसहममियसमर्दि अवरहिंश्रमरहिंघला। दिहचक
सरथक्कवर्ति वचम
हिमवूतमार दिचामीम
क्सिजेना रदंडहिर यापहिमा नियहिंपण वंतहिणिय
सुनदरहिी रथकवा
प्राणा हिमवंतवलेटि
हरयणहि देकरिमिला
जियरहि मवतकुमारूविसजियन साधिकरचमणेश्वरविगउराणमुपतिदयणलहजहारसमुसा
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यम भी निश्चित रूप से मरता है।" बार-बार उस पत्र को देखकर और इस प्रकार उसे पढ़कर युद्ध को शान्त करनेवाले दूसरे देवों के साथ
राजा ने रलों से पूजा कर हिमवन्त कुमार को विसर्जित कर दिया। वह दासता स्वीकार कर चला गया। घत्ता-चामरों, स्वर्णदण्डों, रत्नों, मोतियों के द्वारा और अपने भुजदण्डों से प्रणाम करते हुए उसने त्रिभुवन में जय प्राप्त करनेवाला राजा भरत सिंह की गर्जना से चक्रवर्ती से भेंट की॥४॥
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