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विजयसिरिका मिणीसोरक कुंवाई अंतरं आलं तसं छाई हल्लावियादिदमदिसायरसाएं। चलियाई सम्माइसमा दोहाई वरकुंअरानूढरट ओदाई परकरविमुक्का सखरखनधरना चलधूलिकव
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लाइंविप्फुरियरवश्नाई परिमिलिसमंडलिय वल सारखताइ धावतमा इक्क करधरियको ताई रहचक
जय-विजय श्रीकामिनी और सुख की आकांक्षा रखनेवाले और भी असंख्य शंख बजा दिये गये शब्द करते हुए रंज शंख, भें में करते हुए भेंभा शंख बज उठे। नाग, मही, समुद्र और मेघों को हिलाती हुई कवचों से शोभित सेनाएँ चलीं। योद्धाओं के द्वारा मुक्त अश्वखुरों से धरती का अग्रभाग आहत हो उठा। चंचल धूलि
सरथचक्रवर्ति कन्सेन्वाजित सहित पादनाश्च रिपरि चढउ
से कपिल रंग की तलवारें चमक रही थीं। बल में श्रेष्ठ योद्धा मिले हुए और मण्डलाकार थे हाथ में भाले लिये हुए पैदल सिपाही दौड़ रहे थे। रथों के चक्रों की
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