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शंपलयालण्यामागचाहावयाणेबहियकसान जयश्सरोहरायाहिराउ समापिणताटा दालनचास जश्कदवणमारमिरणकमारुतोधविगिरनविकरमित अवश्कारजहाणय लसम्म मडकहहारणदेववित्रदेव साणकरकिमताम्यसेव टगजेक्निसितासिमस रिड आउहिनचरहमहापरिकतामरडवहमालयचालयकऊरसकटादरापलियामादव।
दिमकणयकवाकलाना अहसासणीथयणकालसावरातकपदाणणरिधार सकशालका तरथचक्रवत्रि अपना वाढव लिसश्याम रिसैन्युचडिट
समचाराधना सामर्शतहारडयाहो काविणारिपलणजपजापहि किषिमहारम्वियार
मानो धकधक करती हुई प्रलय को ज्वाला हो। दूत के शब्दों से जिसका क्रोध बढ़ गया है ऐसा वह राजाधिराज केयूर और कण्ठाभरणों से आन्दोलित माण्डलीक राजा चले। जिनके स्वर्ण के करधनी समूह धरती पर गिर क्रोध से कहता है-"पिता के सुन्दर बचनों की याद कर, यदि मैं किसी प्रकार कुमार को रण में मारता रहे हैं ऐसे अत्यन्त भीषण वे इस प्रकार स्थित हो गये जैसे कालस्वरूप ही हों। एक से एक प्रमुख गिरीन्द्र नहीं हूँ, तो उसे पकड़कर और अवरुद्ध कर उसी प्रकार कर दूँगा जिस प्रकार बेड़ियों से जकड़ा हुआ हाथी की तरह धीर वे वीर शीघ्र राजा के साथ तैयार हो गये। रहता है। मेरे क्रुद्ध होने पर देव और अदेव मेरी सेवा करते हैं, फिर वह मेरी सेवा क्यों नहीं करता?" इस घत्ता-तैयार होते हुए उस योद्धाजन से कोई स्त्री कहती है-"यदि तुम मेरा कोई उपकार मानते हो प्रकार गरजकर, अपनी तलवार से देवेन्द्र को त्रस्त करनेवाला महान् नरेन्द्र भरत उठा। तब मुकुटबद्ध तथा
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