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परयणहिजामरऊवेसाणरुत्रशतावलजकावयाणियछाशजस६ । लसणावतुशल काउंविकोविमुहड्यालिगिन मंडमंडमुहद्धवपरिगणीहरंतिपडिवाइरोग
वाकणविकाविधरियकरपल्लविपणयकलदरमणाचरागगनकोविसक्केचमणमापनासाहड़ विडारिनसकिन एमयरडयमण्यकिरदारवडकाविसयणालया ताटियणाचपयमाला पविवाहमध्यससिन्नरकासविमयपछवासुभालतानल्यावनस्साललपवाहकाशवर किलिकिचिनउच्चाहें काबिरयावसाणसमराणा चंदणकमवाविदलीपी कोविकाविसबहिर जश्गुण श्वसभाणभक्षुणिमहेलामणिश्रवहारमिगुरुपयविमिणपश्वदरमिता श्मक वडकरमटजपियहिं दाणेणविवसिळूयउणारीयपुरमिठविडाहिवहिं वढविणिरुधमन्य Nayारणालं दादावियमिकणह चक्कवियाह पहियवदयारण मडहावश्याणियाचिंद वमणियाविडिव्यापाबाताउनमिरुसुवासपश्यवदारसिंउकामासा दिसटहयमंया जर्णसाहिन गंजगरवणेपश्वनवाहिना चारसूरवसहाणकंदलालोहितससिरोसणादिपरम अपराकण्यावश्याविय कमलिपिलिलणविसंतवियपस्वलणनवानणवलमा परखणिया रहोपचालनउ तवकण्डमादिकणिसाडे चिंतिन उसकिहकवाडंकमलोलुवमणि घरि पिए रखडर्वजरुकंदरहरिणिण मिलियठयोदविडमसहिदाले मिलियउसादककेलिद
मानो स्वर्णकलश पर लाल कमल हो। किसी के द्वारा कोई सुभग (प्रिय) आलिंगित किया गया, और बलपूर्वक रूपवाला नारीजन का आलिंगन कर रमण किया गया॥२५॥ मुख-चुम्बन माँगा गया। प्रतिवधू (सपत्नी) के कारण क्रोध उत्पन्न होने के कारण बाहर जाती हुई किसी को किसी ने करपल्लव में पकड़ लिया। प्रणयकलह में रमणी-चरण में पड़ा हुआ कोई केशरसहित पैर से रमण करते हुए जोड़ों, चक्रवाक पक्षियों और पथिकसमूह और रत विटराज के लिए चन्द्रमुखी लम्बी आहत किया गया। थोड़ी देर के लिए शत्रु के रूप में शंकित किया गया कोई विट शोभित है, मानो वह कामदेव भी रात छोटी लगी। तब पूर्वदिशा में सूरज उग आया, जो काम की आशा से रतिरंग (कामदेव) के समान की मुद्रा से अंकित हो। शयनतल में हार से बँधी हुई कोई प्रिया, स्वामी द्वारा चम्पकमाला से ताड़ित की दिखाई दिया, मानो पलाशपुष्पों का समूह शोभित हो, मानो विश्वरूपी भवन में प्रदीप प्रबोधित कर दिया गयी। बिम्बाधरों के रसरूपी घी से सींची गयी किन्हीं की कामाग्नि भड़क उठी, जिसे रतिरूपी जल के प्रवाह गया हो, सुन्दर सूर्य मानो वंश का अंकुर हो। मानो दिनेश चन्द्रमा के क्रोध से लाल हो उठा हो कि यह पापी से शान्त किया गया। किसी ने उत्साह से किलकिंचित् किया। कोई रति के अवसान में श्रम से खिन्न चन्दन (चन्द्रमा) मेरे परोक्ष में आता है और कमलिनी को लता कहकर (समझकर) सताता है। ऐसा कहकर जैसे की कीचड़ की बावड़ी में लीन हो गयी। कोई गुणी किसी को शपथों से समझाता है कि दूसरे की प्रणयिनी वह आकाश से लग जाता है मानो निशाचरों के पीछे लग गया हो। निशाचर ने लाल किरण-समूह को रुधिर मेरे लिए माता के समान है। जब तक यह वेश्यावर है, तब तक अन्य का मुख कौन देखता है ! अन्य महिला समझा, लेकिन गृहिणी ने छेदवाले किवाड़ों से आते हुए उसे (किरण-समूह) केशरपराग माना, गुफा में को मैं मन में माता के रूप में धारण करता हूँ, गुरु के चरण को छूता हूँ कि तुम्हारी उपेक्षा नहीं करूंगा। रहनेवाली हरिणी ने लाल दुर्वांकुर समझा। लाल कमल में मिला हुआ वह शोभित है, अशोक के पत्तों में घत्ता-इस प्रकार विटराजों द्वारा कपट-कूट और कोमल उक्तियों तथा दान से वशीभूत कर अनुपम मिला हुआ शोभित है। जनों के अधरों में मिला हुआ शोभित है,
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