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रुहेदिजश्वायामिसुरख सेदिं अपऽमोण्डिं वाय मेहिं नश्यंत इंगिडलए विनंति तोमर प्ामणोरर्दमणुसरति लटुको विश्लेदेमि गयदेतसल कमिज़मि कंडूमिपर कपच वरविकरण उडानसमा देण लड़का विडपखंड खंडे मड करुपेरकेजसुपरिक ड सुंदरिगमग गोलंबमाणु विमुक्तवेरिंदा घियकि बाख श्रद्धरणिधुजिउ लहरिवं वित्रु न हमंगलं सुकजल विलिनु जपे विरुदरें किलिन्नु, परमुदी गाारायसिन्तु वय लुमहार) तंजिलेहिं सघुसिणु करमलु अहिणाणु देहि दले सामलं गिनन वयण जंनियडिनपेच्छदितंवण
घत्रा।। सोमेरठ सिरुतरुणि चित्र लारो देणविज्ञेयदि सपठितपरियालिया सरिस किंवरण सरिस उजोय दहा डुग जियगुरु संगामसेरि लुकिय तिऊणु गिलिविमारि कुडुनि मनलुय चलिसादिमाणि यन्त्र पत्र चक्क पाणि छुटकालें ना पियदा हजादा पसरिक माणूस मसाणसी द थिमलोज वॉलजी नियम पिरीही डोमिगिरि जिनगणसीच कुडुड चारेंट लढलिराधरणि कुटुपहरणकरण दसिठतरणि क्रूडचंड वजाइपलाइना छुडाश उलय वलाई पक्त विषाई डुमर वडिल वहिया कटु को सङखन कहिज़ाएँ कुंडुचक्क इहकुग्नामियाइ त्रुडुसेल्ल लिहिला मिसाई छुडकात धरिलसम्म हार ध्रुवंध इजाय दि
यदि राक्षसों के द्वारा मेरा आमिष खा लिया जाता है, यदि कौओं के द्वारा रक्त पी लिया जाता है, यदि गीध आँतों को लेकर चले जाते हैं तो मेरे मरण का मनोरथ पूरा हो जाता है। कोई सुभट कहता है कि लो मैं हाथ देता हूँ, मैं गजदाँतों के मूसल निकालकर लाऊँगा । योद्धा समूह और हाथियों को चूर-चूर कर मैं अयशरूपी भूसा की धूल उड़ाऊँगा? कोई सुभट कहता है- हे सुन्दरी, आकाशरूपी आँगन में लम्बमान (लम्बा फैला हुआ ) जिसने शत्रु को नहीं छोड़ा है, और तलवार का प्रदर्शन किया है, ऐसे मेरे हाथ को, टुकड़े-टुकड़े होने पर तुम पक्षी के मुख में देखोगी ? अथवा शत्रु के द्वारा विभक्त, धरती पर पड़े हुए तुम्हारे मंगलाश्रुओं और काजल से लिप्त, अत्यधिक रुधिर से आर्द्र, छोड़े गये लम्बे-लम्बे तीरों से विदीर्ण यदि तुम मेरे वक्षःस्थल को देखो तो उसे ले लेना और अपने केशर सहित हाथ की पहचान देना । हे श्यामलांगी, यदि तुम मेरे खिले हुए चेहरे और रक्तनेत्रोंवाले
घत्ता- मेरे सिर को गिरा हुआ देखो, तो तुम उसे अपने चित्तरूपी तराजू पर तौलकर पहचान लेना और
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स्वयं देख लेना कि वह राजा का परिपालन करनेवाले के सदृश है या नहीं है ? ॥ ६ ॥
शीघ्र ही संग्रामभेरी बज उठी मानो मारी त्रिभुवन को निगलने के लिए भूखी हो उठी हो। स्वाभिमानी बाहुबलि शीघ्र ही निकल पड़ा। शीघ्र ही इस ओर चक्रवर्ती आ गया। शीघ्र ही काल ने अपनी लम्बी जीभ प्रेरित की और मनुष्यों के मांस को खाने की इच्छा से उसे फैला लिया। जीवन से निरीह होकर लोकपाल स्थित हो गये। पर्वत हिल उठे और जंगल में सिंह दहाड़ उठे। शीघ्र ही योद्धाओं की मार से धरती डगमगा गयी। शीघ्र ही अस्त्रों की प्रभा से सूर्य का उपहास किया जाने लगा। शीघ्र ही प्रचण्ड सेनाएँ देखी गयीं, शीघ्र उभयबल दौड़ने लगे। ईर्ष्या से भरे चरित बढ़ने लगे। शीघ्र ही म्यानों से तलवारें निकाल ली गयीं, शीघ्र ही चक्र हाथ से चलाये जाने लगे, शीघ्र ही भृत्यों के द्वारा सेल घुमाये जाने लगे। शीघ्र ही भाले सामने धारण किये गये, दिशाओं के मुख धुएँ से अन्धे हो गये।
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