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असरिस दिसममा हसो वमिदयाल सो निवेरिसेणे!! वा अम्बुधिजसच तणयहजेडर पत्रुस दहि शुकण्डिन सायरुजिहतिहमयरध्यालउ चावचास्वयण चरियालउ पंचसयासदाय आठ सम्मइयपइमानि वालुवेरसुंदरिसहायक पिउपसंपल हर रखमडगुरु हटिए वपुणमरणयगिरिवरु अरिकरिदसा मुसल पसरिखकर विमल कुलाल वालसुरतरुवरु चरमटेड सास सहसिस्टिक गुरुचरणारविंदर श्रसवस मंदर कंदरनगाइयजस डक्रियदीणाणाहइदिति। यारहरि रायपनि अरु लीलादलियमदायलमरियलु कढिगवाड वाडचलिमहावल घनासो अश्व समुध्रेविभ।। जइरणे कहव विर्यस तास चक्वेंस साहणेण परंमिरिंद णि श्रारणालं ओजिरणहारिणा कुलिसरिणा पवडस्टरोले सोणिमहभाणवे जाणवे देवकल काळा दिनन्तिमदिवसामंते दसदिशिवरूपे सिय सामतें शूवरहिर जियरामो परिवहियसुधरामोदें गिलासत्तिपक्षिय सर तंणिण विषयपिठ सरहें जम होन मन्त्रपुको दरियाव मईमुग विकिरक वरसाव यम्रक विकिंग संतावर को किरसि हिसिदा संता व को मत पडलावर किंपडिबलिन जंतु हे साधा करमहारी कोणावरह को किरणावर श्रासमुद्दमेणि करवा लो कोणासंकश्मड करवा लो को किरशिमदारामार
असामान्य विषम साहसवाला वशी, आलस्य को नष्ट कर देनेवाला और शत्रुसेना को समाप्त कर देनेवाला। और भी यशोवती के पुत्रों से जेठा परन्तु तुमसे छोटा, सुनन्दा का पुत्र, जिस प्रकार कामदेव, उसी प्रकार मकरध्वजालय (मकररूपी ध्वजों का घर, कामदेव का घर ), सुन्दर मुख चारित्र का आश्रय और सवा पाँच सौ धनुष ऊँचा, उसी को इस समय कामदेव कहा जाता है, ब्राह्मी सुन्दरी का भाई. पिता के चरणरूपी कमला में रत भ्रमर, श्याम शरीर जैसे मरकत का पहाड़ हो, शत्रुरूपी गजों के दाँतोंरूपी मूसलों के लिए हाथ फैलानेवाला, पवित्र कुलरूपी आलबाल (क्यारी) का कल्पवृक्ष, चरमशरीरी तथा शाश्वत सुख श्री को धारण करनेवाला, गुरु के चरणकमलों के प्रेम रस के अधीन, पर्वतों की गुफाओं तक जिसका यश गाया जाता है, दुस्थित दीन और अनाथों का भाग्यविधाता, मनुष्य श्रेष्ठ, शरणागतों के लिए बज्रपंजर (वज्रकवच) महापर्वतों और मदवाले महागजों को खेल-खेल में दलित कर देनेवाला दृढ़बाहु और महाबली बाहुबलि
घत्ता – वह मन में उपशम भाव धारणकर स्थित है। यदि वह कहीं भी युद्ध में भड़क उठता है तो चक्र के साथ सेना के साथ हे राजन्, वह तुम्हें भी नए कर देगा " ॥ ५ ॥
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प्रकट है सुभट शब्द जिसका, ऐसे उत्तम बज्र धारण करनेवाले से जो नहीं जीता जा सकता, जो मनुष्य में सम्मान पाता है, कलहकाल में देव और दानव को जीतता है। जिसने महीपति सामन्तों को पकड़ लिया हैं और उखाड़ दिया है, जिसने दसों दिशाओं में अपने सामन्त भेजे हैं, जिसने अपनी रूपऋद्धि से रमणीसमूह को रंजित किया है, जिसमें पृथ्वी का मोह अत्यन्त बढ़ रहा है, जिसने अपने बाहुबल से भरत क्षेत्र को पराजित कर दिया है, ऐसे भरत ने यह सुनकर कहा-"यम को यमत्व कौन दिखाता है? मुझे छोड़कर पृथ्वीपति कौन है? इस प्रकार जग में कौन सन्ताप पहुँचा सकता है? आग की ज्वालाओं से कौन अपने आपको सन्तप्त करना चाहता है? किसे मेरी प्रभुता अच्छी नहीं लगती ? आकाश में स्खलित होकर जाते हुए किसे अच्छा लगता है? कौन मेरी सेवा नहीं ग्रहण करता? यह धरती कौन नहीं अर्जित करना चाहता? समुद्रपर्यन्त धरती से कर वसूल करनेवाली मेरो तलवार से कौन आशंकित नहीं होता? कौन मेरे अनुचरों को मारता
है?
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