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हिंजामणग्रणेसहसंधाशारणालं णजमारुमहाहव जामहाहवादानसमला जाणहाशा पिरामलहमहायलतिरकखमलीलातामतामुड्यउपसिनाजपश्यणवनापालिकण
लताषणवाडवलिधरिश्वधतिकारागारणिलिंडरपवनजतणपउजिउतारपतहालाचसाजा तस्थवकवर्ति उणिसवलुस
पोनापुरिल ऋतुपायवाड़
गरित्रायड वालकडा
विहरणसुहडे सुलकसामुद सणुदेराजाकुला सुदुपसिछ पंडि उपडपकलकिसमि हउदिविहविसया तासालासिबउदि
इतरुमहिमायमह खवयवंबरस्किदापड़तेदन मडखाणिश्रादायजेदन गयउपरिवाश्यपतला पायणगुरु वकथ्यिहहिपता जहिवणतरूसाहहिमडविनलश्चलकनाथखडविललश्शदाहरणवा ।।
डोर पर तीर का सन्धान नहीं करता॥११॥
जबतक महायुद्ध में समर्थ शत्रु तुम्हें युद्ध में नहीं मारता और जबतक तीखी तलवार हाथ में लिये हुए वह तुम्हारी निराकुल धरती का अपहरण नहीं करता, तबतक आप उसके पास दूत भेजें। यदि वह प्रणाम करता है तो उसका पालन किया जाये, नहीं तो फिर बाहुबलि को पकड़ लिया जाये और बाँधकर कारागार में डाल दिया जाये।" जब उसने (पुरोहित ने) यह मन्त्रणा दी तो राजा ने उसके पास दूत भेजा। वह दूत
अपने स्वामी में अनुरक्त शत्रु का विध्वंस करनेवाला सुभट, सुलक्षण, सौम्य, सुदर्शन, देश-जाति और कुल से सिद्ध-प्रसिद्ध, पण्डित, चतुर, प्रभु की लक्ष्मी से समृद्ध, विविध विषय और भाषाओं का बोलनेवाला, उत्तर को देख लेनेवाला और महिमा से महान्, तेजस्वी, प्रभु का तेज रखनेवाला, मधुरभाषी, आदरयुक्त और अजेय था। अपने वाहन को प्रेरित कर दूत चल दिया और कई दिनों में पोदनपुर नगर पहुँचा। जहाँ वनतरुओं की शाखाओं से मधु निकल रहा था, चंचल अशोक वृक्षों के पत्ते हिल रहे थे। अत्यन्त लम्बे प्रवास के
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