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पाठ माण मरहुविसटुमपप्पिण जावोयक मेकअपुणेपिण, तरुणिकंठ कंटश्य पहाडि अरिवरदविदंत परिहहर्दि यहिय पर्यटकोदंडा है आलिंगन दिनुनद डाह तहिणपुणरवि राणे अशा गुरुराणचविगण लजिनः। कलसामिमहावलस्यणुराणि पठणच तिजेरानं घरता हो इदा लिड्डन श्रमपरिपयान आरणाली जोवरचरमकल यरो पढमनिवंव पंकमकियाए जिव सोपयासि जेल लूसि । रायल चिया तो जास्व कुरिचक मिजास दंड पर दंडनिसलाइ जासुपुरोड पुराईयेक वखिदिवस गच्छे कामणिदिणमणिसासवड थवथ वइतिङगुइक्क कायइकनुहों विवरे
श्रमिक सत्रुईकर मु-मूहास सणावइसेणा वरणा सई मागड़ वरतणु जेण पहा सवि पिजिनसुरुवेयहणिवासवि जेणतिमी सकवाडुविहरि सिंधुदेविया हिमाणुपलो हिउ दिल के रहिमर्वतकुमारहो, पण आठ वसदरता रहा तदिष्यानुपाठ सन्निदियन काहिळलेणवससिपाहिय तंतदिदी सानप कलकल मिचाणामैकन सभ सरकन विसदरमलाई सर्विस दवारिस जिनोडलइ सामरियई, पालेायसेल कि दो पुराउ जगियनगंगा कूडो का मंदाइणिकलसकर लोएंदी सइ केही थियन्हाणके १६४
अतः चित्तभेद, मान और अहंकार छोड़कर जीव को एकमेक मानकर, तरुणीजनों के कण्ठों को कण्टकित करनेवाले, शत्रुरूपी गजों के दाँतों को परिभ्रष्ट करनेवाले, प्रदीर्घ धनुषों को आकर्षित करनेवाले जिन बाहुओं से (जिस भरत का) आलिंगन किया है उन्हीं बाहुओं से उसके साथ युद्ध में नहीं लड़ा जाना चाहिए, गुरुजन में अविनय से लज्जित होना चाहिए।
घत्ता - जो राजा, कुलस्वामी, महाबल, सुजन और गुणी व्यक्ति को नमस्कार नहीं करते उनके घर में दरिद्रता बढ़ती है और उनका यमपुरी के लिए प्रस्थान होता है ।। १६ ।।
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जो परम चरमशरीरी कुलकर है, पहला राजा है, जिसने जिन के वंश को प्रकाशित किया है, और कमलनयनी राजलक्ष्मी से भूषित किया है। जिसका चक्र शत्रुचक्र को नष्ट कर देता है, जिसका दण्ड शत्रुदण्ड को रोक देता है, जिसका मंत्री आगे की बात देख लेता है, जिसका तुरग हृदय के साथ दौड़ता है, जिसका
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कागणी मणि सूर्य और चन्द्रमा की भी अपेक्षा नहीं रखता, जिसका स्थपति चाहे तो त्रिभुवन की रचना कर सकता है। विरुद्ध होने पर वह छत्र छा लेता है, और शत्रुओं के तलवार से प्राण निकाल लेता है। चमू (सेना) को पकड़ते हुए उसका वर्म अत्यन्त शोभित होता है, जिसने मागध और वरतनु को जीत लिया है और विजयार्थ पर्वत निवासी देव को भी जीत लिया है। जिसने तिमिस्रा के किवाड़ों को विघटित कर दिया और सिन्धु देवी का अभिमान चूर-चूर कर दिया। हिमवन्त कुमार को आज्ञा (अधीनता) देकर फिर वह कैलास पर्वत के तट पर आया। वहाँ उसने अपना नाम लिखा, जिसे छाया के छल से चन्द्रमा ने ग्रहण कर लिया, वही नाम चन्द्रमा में दिखाई देता है वह कलंक नहीं है, राजा भरत के नाम से अंकित होकर चन्द्रमा सशंकित परिभ्रमण करता है। मेघकुलों को बरसानेवाले, नागकुलों और अमर्ष से भरे हुए म्लेच्छकुलों को जिसने जीत लिया है, और मानो जिसने हिमशिखर के मुकुटवाले गंगाकूट को भी भय उत्पन्न कर दिया है। घत्ता — कलश हाथ में लेकर गंगानदी वहाँ पहुँची, लोगों को वह ऐसी दिखाई दी जैसे स्नान
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