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धारणालालापत्थरोधरणिवणाहरं पासणसण्याशसिणवहसहायगसालसायरा ऋदे
विजायानापकजेपरवाहवलिसइमणउतउकरणछमूहयाणवशताणसापराहना सरावकवत्रिक
पुरोहित सडसामतमान अागा
क्रवतिसकपन करिअदाखवज्ञ
सहनकासा वाधवकासारदीयो
दसुपरिखपुण्य सतउमणहरुध तरुयापुरत कलुकलवलसा मतसुस्तपुणि दिलजापुराठ
सक्तिचित्र उबियाराखिहसंगम पारिसवृहिरिहदश्वास उंगरणावमहिजाम अछितासरहकरहे।
रंगमा अळसजावझविणसहजास्वमहायसहासकरशजायणलमखलसंसन रक्तध म्याणम्महणमाता जावदिचाउणकोवस्तापाडयलणवधज्ञाणम्मझियसालसयलवर
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यशकीर्तन, विनय, विचारशील बुधसंगम, पौरुष, बुद्धि, ऋद्धि, देवोद्यम, गज, राजा, जंगम, महीधर, रथ, करभ तब दूत राजा भरत के घर आया और बोला- "हे राजन् सुनो, शील के सागर तुम्हारे भाई, हे देव आज और तुरंगम हैं। जबतक वह अर्थशास्त्र का अनुसरण नहीं करता और जबतक सैकड़ों सहायकों को नहीं ही मुनि हो गये हैं। एक बाहुबलि ही दुर्मति है, न तो वह तुम्हें प्रणाम करता है और न तप करता है।" यह बनाता, जबतक दुष्टों की संगति और क्षात्रधर्म के निर्मूलन के मार्ग में नहीं लगता। सुनकर पुरोहित ने भट, सामन्त और मन्त्रियों के लिए उपयुक्त यह कहा-"उसके (बाहुबलि के) पास कोश, घत्ता-जब तक वह धनुष हाथ में नहीं लेता, तरकस युगल को नहीं बाँधता और भाल तथा कान तक देश, पदभक्त, परिजन, सुन्दर अनुरक्त अन्तःपुर, कुल, छल-बल, सामर्थ्य, पवित्रता, निखिलजनों का अनुराग, निमज्जित होनेवाली
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