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खालिविसकताणमुपासपुरचकणिस्त सुश्चरिणअमायविनापरवरियापुराणसचिवदा
परदासनपम्पिसबमि शुवमायागणिक्य पमिनुवा पत्रदाणेपा विहदाचितुवातुन
विलाणादिनच्व सरथकवतिक
रसवरियाणव उस्करन्ननगर
कलनव सुसिमंद माहनपसा
लेजमकरणवापाण सविरेस्त्रक्रिएच पिश्चलपासपिहलण
सरवाइरियमलिण भणेपडियारणव णिबिंयारतपरसाएवाणिसिसमयागमविमानवासहन्नपतरुणाय रमण पुणहीपाडणपसरणवाणिहापरतुणावइलुहरपुवाछवा थिउचक्कणपरवरपज
उसमे सामारिसायरवर
उसे कोलित करके छोड़ दिया हो। निश्चित रूप से चक्र घर में प्रवेश नहीं करता, मानो अन्याय से उपार्जित धनहीन के घर में शरण के समान, पाप से मलिन मन में पण्डितमरण के समान, उपशान्त व्यक्ति में क्रोधपूर्ण धन पवित्र घर में प्रवेश नहीं कर रहा हो, जैसे सती का चित्त पर-पुरुष के अनुराग में, जैसे स्वतन्त्रता दूसरों आचरण के समान, निर्विकार में शरीर की भूषा के समान, निशा समय के आगमन में सूर्योदय के समान, की दासता में, जैसे मायावी स्नेह-बन्धन में मित्र के समान, पात्रदान में पापी के चित्त के समान, अरुचि से बुढ़ापे में तरुणीजन के रमण के समान, पुण्यहीन में जिनगणों के स्मरण के समान, निर्धन और निर्माण व्यक्ति पीड़ित व्यक्ति में दिये गये भात के समान, रति से व्याकुल मनुष्य की नयो विवाहित दुलहिन के समान, शुद्ध में बिहल के उद्धार के समानसिद्ध मण्डल में यमकरण के समान, पथ्य का सेवन करनेवालों में रोग के विस्तार के समान, दुर्बल और घत्ता-चक्र स्थिर हो गया, पुरवर में वह प्रवेश नहीं करता।
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