________________
सरशणावश्केपविधस्दिन समिविखवणदेतारासयहिंसरणहिपटिरियन आरणाला तामणि
| दणिराज्ञया दराणचंडवाउक्ष्यातिथियमिदण्डाय 1 णिवलगयतरुपतरणितयाहातणिसुणप्यिारुपश्य राजेणयहाराज्यमरुनिराश्विरकामताणसाटि परमसर देवदेवडायसरदेसर मुअजयवलपाडवलाव हवह पाथिरलमहिमलकपवणहतिहामिमचददि
सह जपापरिममहिलविविलासह कितिमविजणम वोहितरत्ररथ
त्रिसूहायही कोपडिमल्लुएनहलामह सेवकरतिणनह चक्रवत्रिका गश्चयन।
साश्वज्ञपणाचतिनपाराश्य दतिणकरत्तसकेप्परि कधर पहियाखजतिबसवरक्तिसिझतिपक्षण जि पश्यपणचवणतणनिधिना/स्वरूपरमसरू
उधणुधिविहाणेपेरियरुकासवतणसह णवपाखण मुद्ध यडरणधुरधामाधारणाला विलसियक्रममग्नको गुरुयगुणगणा तसणिहित्यथणा २५८
जैसे किसी ने उसे पकड़ लिया हो। सुरवरों से घिरा हुआ वह ऐसा लगता है जैसे आकाश में तारागणों से है, ऐसे तुम्हारे भाइयों का यहाँ प्रतिमल्ल कौन है? नखों की कान्ति से प्रदीप्त तुम्हारे चरणकमलों को वे घिरा हुआ चन्द्रमा हो॥३॥
नमस्कार नहीं करते। सिंह के समान कन्धोंवाले जो तुम्हें कर नहीं देते, वे व्यर्थ ही धरती का उपभोग करते
हैं। जिस कारण से वे आज भी सिद्ध नहीं हो सकते हैं उसी कारण चक्र नगर में प्रवेश नहीं कर रहा है। तब प्रसिद्ध मनुष्य राजा भरत ने कहा-"प्रचण्ड बायु के समान बेगवाला, तरुण तरणि के समान तेजबाला घत्ता-कामदेव परमेश्वर इक्षुधनुष (इक्षुधन) से युक्त धरती के अपहरण और युद्ध के परिकरबाला, वह चक्र निश्चलांग क्यों हो गया?" यह सुनकर पुरोहित बोला-"जिस कारण से इसके गति-प्रसार का कासव (ऋषभदेव का एक पूर्व पुरुष) का पुत्र, नवकमलमुखी और भुवन के उद्धार में धुरन्धर ॥ ४॥ निरोध हुआ है उसे में बताता हूँ। हे नरेश्वर, देव-देव. हे दुर्जेय भरतेश्वर, सुनिए, जिन्होंने अपने बाहुबल से शत्रुओं का दमन किया है, पैरों के भार से धरती-तल को कॅपाया है, तेज से सूर्य और चन्द्र को पराजित कामदेव से विलसित, भारी गुणों से युक्त, युवतियों के हृदय को चुरानेवाला, किया है, पिता ने जिन्हें महालक्ष्मी का विलास दिया है तथा कीर्ति, शक्ति और जनमात्रा जिनकी सहायक
Jain Education Intematon
For Private & Personal use only
www.jan315.org