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इधरणिकाय हो [ला 11 तंचकुणायरिदिंपश्सरइ वेसदेअणियवियाखं दियउज्जन कवडसयहं
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विधुन्न हो रणाल फणिणरसुरपससिय जसविह्नसियं । गुणगणेोददि
इसके लिए धरती अवश्य कर देगी।
घत्ता - वह चक्र नगरी में प्रवेश नहीं करता, उसी प्रकार जिस प्रकार सैकड़ों कपटों से भरा हुआ धूर्त का विकारग्रस्त हृदय वेश्या में प्रवेश नहीं करता ॥ २ ॥
विद्याधरसरा
पडविणायमाणसे पिस्रुणु माणसे सयस वित्रमियक्कडं वाहिरेथवर | गावश्दश्वे १५१
देवसला॥
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मानो जैसे नाग-नर और देवों द्वारा प्रशंसित, यश से विभूषित और गुणगण समूह से दीप्त, सज्जन का स्वच्छ चरित्र, दुर्विनीत मानसवाले दुष्ट मनुष्य में प्रवेश नहीं करता। सूर्य का अतिक्रमण करनेवाला वह चक्र बाहर ऐसा स्थित हो गया मानो दैव ने
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