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गियर दिखारदिंपरिमरि पिडार भरतवारिदिंउठि गंधव हिंसा हिंसेवियन सिद्दिजालदि
चवलहिंता लहिणोला चुकारेहिं छता सोमा सगजागंग हिकामिि
कैलासगिरिपर्व सियसनडा। सासूचय दिना लिहि ऋवत्रिण्डसा धिकरिकेलास रसि रखाणार गिरिजायगा रिसियसीदा।
लपसादिन
सुर-समूहों और विद्याधरों से घिरा हुआ निर्झरों के झरते हुए जलों से भरा हुआ भव्य गन्धवों के द्वारा सेवित, चंचल अग्निज्वालाओं से सन्तप्त, हरे वृक्ष समूहों से आच्छादित वानरों की आवाजों से निनादित
धत्ता- वह प्रवर महीधर आकाश से लगा हुआ ऐसा दिखाई देता है मानो धरतीरूपी कामिनी का स्वर्ग को दिखानेवाला भुजदण्ड हो ।। १९ ।।
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लग्नड सामा
हे सुन दंडुपदंश जो अकरा यसिलु विसद पितुचिल जोद सिलिव खड सहू दसूल जहिदास
हिंडमसागयई किंप्परवी मरियहारसय अलिकांकारिणपरस्मुिदश जोगाइलाई लड
विज़न तरुजा हिंकाश्यड क पिमाइस ॥ हिदरपवरु दी
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जिसकी चट्टानें अप्सराओं के चित्रों से लिखित हैं, जिसके बिल विषधरों के शिरोमणियों से आलोकित हैं, जो सिंह शावकों को सुख देनेवाला है, जिसकी विशाल गुफाएँ सिंहों से प्रसाधित हैं, जहाँ वृक्षों की शाखाओं पर किन्नरों के द्वारा विस्तृत सैकड़ों हार दिखाई देते हैं, जहाँ भ्रमर झंकारों से अपना गान नहीं छोड़ता, जहाँ भील का बच्चा सुख से सोता है,
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