________________
ANDARDadamannरिदित्राहरपल
जमनदेवंगवाए परिकिरकंका
मेणछरचनदिहा पूरेगावाले
किज छिपवसु मकरखरसड़यां
वनसुरतरूपन्न तारण घघरगाइ
Dडिणदणादायोमानमः वादियासिहकदा
चंदा दप्यपकल कलेकिस्तान सुधरनध्यमाहि
शासिउमंगलम लावारिसरमा रकमहसलहिल
जमुईनसदिहिम इंजर्वेदखगिता
रिदर्दिकखिरके धरतमणहारिहि।
विजितञ्चाभरका रिधि मदि
सनविखणिज्ञि चिकमर्दिविज्ञान
यविलासूईि मझहे साहेसरुपत्रसरात
सहिहिंबरिसंसहास दाधारणलालगागागागागागा
नउपसरपुरखरेर १५५
पुर-स्त्रियाँ अपने आभरण ग्रहण कर रही हैं। कोमल देवांग वस्त्र पहने जा रहे हैं। केशर का छिड़काव किया है। यक्षेन्द्र, खगेन्द्र और मानवेन्द्रों के साथ सुरेन्द्रों के द्वारा प्रशंसा की जा रही है । गजवर के कन्धे पर बैठा जा रहा है। कपूर से रंगोली (रंगावलि) की जा रही है। भ्रमरसहित कुसुम फेंके जा रहे हैं, देववृक्षों हुआ सुन्दर चमर धारण करनेवाली स्त्रियों के द्वारा हवा किया जाता हुआ(कल्पवृक्षों) के पल्लव-तोरण बाँधे जा रहे हैं। घर-घर में जिनपुत्र का गान किया जा रहा है। दूध, दही, घत्ता-समस्त धरती को तलवार से जीतकर साठ हजार वर्षों तक दिग्विजय-विलास करने के बाद भरत तिल और चन्दन, दर्पण, कलश धारण किये जा रहे हैं। दूसरी देव-कन्याओं द्वारा मंगलघोष किया जा रहा राजा अयोध्या नगरी में प्रवेश करता है॥१॥
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jain309org