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सरथचक्रव कउसे अयो ध्यानगरी श्रागम ลม
रा चलियामंडळेसरा खयरपुर कंठवडद्वारा होगिरिला शिवसें समथल किम्तकिल किक इनियनजल किम किमकरमरवणु किमकिष्मधूला जायठत किष्प किष्म देसतरुलंधित कि भकिडसुविच्या संघिउ किम किमपरण अवलो कि किष्पडिसप्पुणिचाइन किलकिप वरवादवादिउ किष्मकिमपरमंडलुसा दिन कणखदेडमाडयपरिहारे आवर्तपडखा वारे पुरणा
और गले में हार पहने हुए मण्डलेश्वर, विद्याधर, सुर और मनुष्य चले। गिरि-स्थल एक पल में समतल हो गया। कौन-कौन जल कीचड़मय नहीं हुआ? कौन-कौन-सा वन चूर-चूर नहीं हुआ? कौन-कौन तृण धूल नहीं हुआ। किस-किस देशान्तर को उन्होंने नहीं लाँघा ? किस-किस दुर्ग का आश्रय नहीं लिया? किस
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किस आयुध को नहीं देखा? किस-किस शत्रु सेना का प्रतिपतन नहीं किया? किस-किस श्रेष्ठ वाहन को नहीं चलाया? किस-किस शत्रुमण्डल को नहीं साधा ? स्वर्णदण्डों से अलंकृत है प्रतिहार जिसमें, प्रभु के ऐसे स्कन्धावार के आने पर
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