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वारहकोहहिहिहियामाजासमवसरणुराईसंहियउ घना ताहौगिरिवरहोतला धरणसिसिचिरूपमाठाणावश्मंदरदो चढ़ादसतारामपुटकनाशामणिमन्ड़पक्षा सणहरहिसरखरकरिकरदाहरकरहि कवालविसमानावलिहिं नहाइयणउकुसमजलि
कुलासगिति बननलिहा सरछचका कनसन्धुश्रा -उनला
LARIDASTHANI हि तणुतेमजलियवणलिहि उवसमवेतहिासमिनकालिहि कञ्चयाणिवहि समुहमा १५३
जहाँ बारह कोठों से अधिष्ठित स्वयं समवसरण स्थित है।
घत्ता-उस कैलास गिरिवर के नीचे धरणीश ने अपना शिविर ठहरा दिया मानो मन्दराचल के चारों ओर तारागण स्थित हों।॥२१॥
तब शुद्धमति राजा भरत मणि, मुकुट, पट्ट और भूषण धारण करनेवाले ऐरावत की सैंड के समान दीर्घ बाहुवाले, कण्ठ में मुक्तामालाएँ धारण किये हुए, नव कुसुमों की अंजलियों को उठाये हुए, अपने शरीर के तेज से बनस्थली को उजला बनाते हुए, शान्त और कलह का शमन करते हुए कुछ राजाओं के साथ
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