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नमिश्मिमिक्षा सरथक्कक्षिका सेवाश्राप
तूरयहरवंचियलियजलविंघसयाध्यमुनिय ईचोयहरिकरिखासदाझ्यशणियणिन्दा परियणशेखणेवविसहायरणासरिय दिहिचित्रि चिनजापार्टिसरियायला खयरकिकरहिं परि। दाखिदेवसमापहि जहिणिवसशणिवश तहि श्राश्यश्रमरधिमापहिंमठालियकरहिंपणार विमसिरहिं पकवालिटणमिविणमासरहिं अष्टा नणिवालसामिवई पदिहणमणहंतोश सुडपदिहश्रावश्यसपदिहश्वरसिरि पश्सवहतायदानवम्मासरहा बायसेपर मनिणेसरहो चामायरमणिणिमित्याअर माईखेयस्वखरबहिराप्त्रासिविपश्जर
महाशब्दवाले नगाड़े बज उठे । सैकड़ों कुलचिह्न उठा लिये गये; अश्व, गज और रथ हाँक दिये गये। अपनेअपने परिजनों को बुला लिया गया। शीघ्र ही वे दोनों भाई निकले, दिशारूपी दीवालों के चित्रयानों से भरे
घत्ता-विद्याधरों के अनुचरों, घिरे हुए अपने रत्नविमानों से मानवाले वे वहाँ आये, जहाँ राजा निवास कर रहा था॥१६॥
हाथ जोड़े हुए और सिर से प्रणाम करते हुए नमि और विनमि राजाओं ने राजा से कहा-“हे नप, आप हमारे कुल स्वामी हैं, आपको देखने से हमारी आँखों को सुख मिलता है, आपको देखने से आपत्ति दूर हो जाती है, आपको देखने से लक्ष्मी घर में प्रवेश करती है। कामदेव को नष्ट करनेवाले परम जिनेश्वर तुम्हारे पिता के आदेश से स्वर्ण और मणियों से निर्मित घरोंवाले अत्यन्त रमणीय विद्याधर-पुरवर, अत्यन्त स्नेह के कारण हमें दिये गये थे,
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