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णवरगुहाकहाणखगोसायउ सबहसायल गादीसश्यञ्जपण्यताधातामति
दिगुशुणरकिटान परमपद ताणयहोकिया।
उमहमाग्माहेमथरगश्हा तदासिक्लिायरज लरथचक्रवनिक जमनावरमंत्रया
सवश्दे णामिविपमिकमाखर गंझारधी थना
रणलाधरणहटारवश्यायावयलदेणिय वसतिगछ।
नमविनमिवता
हामवेतवासी। गिरिमल साहाफलि अवपश्पस
-माससहिख गपडामहंगामहतन्नियन कोधिनधरपेणविटांत टार इंतिरमंतिमंतिदिणु पणवंतिमहाडजएपनिण
घत्ता-लेकिन वह गुहाकुहर राजा के जाने के योग्य नहीं हो सका। उसे सब कुछ शीतल दिखाई दिया, जैसे पराया कार्य हो ॥१४॥
वीर और युद्धभार उठाने में समर्थ । वे इस अविचल गिरिमेखला (पर्वतश्रेणी) के विद्याधरपति होकर रहते हैं। झुकी हुई शाखाओं और खिले हुए वनोंवाली यहाँ पचास साठ विद्याधर पट्टियाँ हैं। और वह उतने ही करोड़ उद्दाम गाँवों को धारण करने के कारण विभक्त हैं । वे (दोनों भाई) वहाँ भोग करते हैं, रहते हैं, दिन बिताते हैं और तुम्हारे पिता ऋषभ जिन को प्रणाम करते हैं।"
तब मन्त्रियों ने राजा से कुछ भी छिपाकर नहीं रखा और परमात्मा (ऋषभ) के पुत्र (भरत) से कहा-"तुम्हारी मन्थरगतिवाली माता यशोवती के वे दो भाई हैं, कुमारवर, नाम से नमि और विनमि, धीर
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