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| तैणिसणविशासियसमधुर पडाणायेसियाणवहसर गयतेहिंसपिलखनरादिवशकरकंडमडला
वाणिविजझमहियाले मुख्यमनचकवजारिसहपा ऊवणादिवरसहोमवरडलवणसरहा यहिमामडफरूपरिहरहो चिनापळिवावान जए णरायणवित्रिपडिवाश्यरुहसडिलह मिदोसिबइंडपडेजशपाताबंधुणेकरूनला
बियन खरिदर्टिकाविहाविद दियाउलटर नामिविनामिराज
धीरूविकंपियन पणाणणएणपदापियरत ऊपासिरथ वक्र
तयपूरपिगलियत जिहदवलतिट्युपुलर बर्ति निदेवपल्य
डअममायाराहायोजहदारसपतवणुहाउन रिकातदसणुतलणहाटप्यारकोजलसणा
पवणहाउप्परिकोपलसूणमारकहाउप्परिका वणगश्रुषतरहहाउपरिकोणिवश्यघासविताविसन्त्रिाईबाययमरजलसहियाज्ञा १५०
यह सुनकर राजा भरत ने युद्ध की धुरा से अलंकृत गणबद्ध सुर वहाँ भेजे। वे गये। और उन्होंने विद्याधरपति से कहा कि छह खण्ड भूमिमण्डल का विजेता चक्रवर्ती राजा भूमितल पर उत्पन्न हो गया है। और जो भुवनाधिपति ऋषभनाथ है, उसके पुत्र भरत का तुम शीघ्र अनुगमन करो, अभिमान और घमण्ड छोड़ दो।
घत्ता-यदि पार्थिववृत्ति नहीं, तो स्वजनवृत्ति स्वीकार कर लो, क्योंकि दोषी चाहे गुरु हों या अपने गोत्रवाले, वह दण्ड प्रयोग करता है ॥१५॥
तब वे बन्धु के स्नेह और भय को समझ गये। विद्याधर राजाओं ने अपना काम समझ लिया। उनका धीर हृदय भी काँप गया। उन्होंने प्रणय और न्याय से निवेदन किया-"अपने शरीर के तेज के प्रवाह से आकाश को पीला कर देनेवाले देव-देव ऋषभ जिस प्रकार हैं, उसी प्रकार भरत भी हम लोगों के लिए आराध्य हैं, बताओ सूर्य के ऊपर कौन तपता है? बताओ आग के ऊपर कौन जलता है? बताओ पवन के ऊपर कौन चलता है? बताओ मोक्ष के ऊपर कौन-सी गति है? बताओ भरत के ऊपर कौन राजा है?" यह घोषित करने पर उसके द्वारा विसर्जित पूजनीय अमरकुल आये,
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