________________
वैताद्यपर्वतक परिमणिमालस्व कउघ६॥
गुहकवाडुप विदंडे २३ जिलादसणे जिदडक्किमण्डलु जिन्ददिवस यकसमेतिमिरमल जिद इसदा वैमयणसरु जिदपिसिन। इसरु सुकद समागमे कुकइजिहं विहडिट कवाड़ पुष्क
शितिहात हिंमती मुजोपास रिउ तहा। लय/का वण घरंदा रिव तेजे सिहरकैलर
Jain Education International
१४
जिस प्रकार जिन भगवान् के दर्शन से पापपटल, जिस प्रकार सूर्य के उद्गम से अन्धकार-मल, जिस प्रकार शुद्ध स्वभाव से काम, जिस प्रकार दुष्टता से स्नेहभार दूषित होता है, जिस प्रकार सुकवीन्द्र के समागम से कुकवि विघटित हो जाता है, उसी प्रकार शीघ्र वह किवाड़ विघटित हो गया। वहाँ जो भयंकर शब्द हुआ
RIDANA
श्यकरु सि
रिया हमाल
गाणसुरू पूडिहारे गम दो दरिसियन महि वसिदूत हो जयलळिसहि श्रावेविणमंसियपकदेपन नहि शिवसंतदिमासगया। १४१५
कमकुमलाला यणहरिसियन वलवणासादियम
सरथ चक्रवर्तिक इमूर्णिमालदेव सेटिए कारबाइ मिलना
SHIVAH
For Private & Personal Use Only
उसके भय से कौन नहीं थर्रा उठा ? वहीं शिखरस्थल पर श्रीनृत्यमाल नाम का देव अपना घर बनाकर रहता था प्रतिहार ने उसे राजा को दिखाया, वह चरणकमलों को देखकर प्रसन्न हो गया। सेनापति ने म्लेच्छ धरती सिद्ध कर ली और उसे विजय लक्ष्मी की सहेली सिद्ध हो गयी। आकर उसने प्रभु के चरणों में नमस्कार किया। वहाँ रहते हुए भरत के छह माह बीत गये।
1297/org