________________
दिलहिं वयगिरिंदोपछिमहे तिहासितिमासहिइममूहे मिशमसल्लाथलियदिह
किंडययहादेवधिलियाहे तिहाणियसपणिमा पकिह णविलनगिरिकहरुन्तजिहाणिहिगाहें सणिनव्लाहिवश्वमोग्नपिसपदिपुलशद पदपकवाडतिहाविहडेणियुक्चश्यविजिह पञ्चतपसाहविपहिलङजनाचिरियसपासड़ा मेघेवरसेनापर छम्मासन
तिगुफाकवहार सरथचक्रवति
सेननश्छ।
दडस्नलकरिव कउमन्युवेताह
मजाण्या
श्वस्नचदिकरि
फादारफोडिग
मिपड़िया हरा।।
एणपत्र
सिजलधारा धाजसवडणतावरणमुहणमहारडणशक्षा मणमणु हरिरयणेचडचिपमंडे वासविहयटॉगिरि,
कागकात्रा
विजयार्ध पर्वत की दुर्गम पश्चिम दिशा में जहाँ तिमीस गुहा थी। मृगों के मार्ग में लगे हुए हैं व्याघ्र जिसमें कर शीघ्र आओ। मैं यहाँ छह माह रहूँगा और तुम्हारे लौटने पर जाऊँगा।' तब असिधारा के जल से अपने ऐसी पूर्व की कंडय गुहा के निकट सैन्य इस प्रकार ठहर गया, मानो जैसे गिरिकुहर की ऊष्मा हो। निधियों यशरूपी वस्त्र को धोनेवाले सेनाप्रमुख महायोद्धा नेके स्वामी ने सेनापति से कहा-'लो तुम्हारे योग्य आदेश दे रहा हूँ, दण्डरत्न से किवाड़ को फिर इस प्रकार घत्ता-पूर्व क्रम के अनुसार अश्वरत्न पर चढ़कर और क्रुद्ध होकर वज्रदण्ड से गिरिगुहा के किवाड़ आहत करो जिससे वह खुलकर रह जाए। तुरंग सेना के साथ शीघ्र जाओ और इस प्रत्यन्त देश को सिद्ध को आहत किया।॥१३॥
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org