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कामगलहळाडळियमिता परहिटानता सायम्पनो पकयएताउन्नमसन्नो गुरुयणसना जाय विवनालाविक्षनटश्यहाकयसम्माको खलकलवडादाधियडा तासियसामरासास रविक्षामा रामाकमायायडयामो हया
-त्तरथचक्रवार
काङ्कगंगाव्या सिरिधिरहोदिहोत्सरहा सतिसूरायाका
तटिकरिता सुमकराय थानगिरायणवियसिएगाद
थजवाशम यासाए सुपारविलाय छत्रा। वरुणदिा
ली। सासिनहा एंगमुणिमाएससिकंदहाथ मयसटिकलसु पल्लविठसासणरिंदा होकरकडयादकर करा मलेविमटविणिहिलसिमिणार स्वारुणीहारापिड वरवधुर्वधुमाणिक सिद्ध हिमवंतसिहरसिहरसरिय दिसतरदविण्मुखरसरिण जिहवलसतिहवलसुए पसहश्मरम्मेधायारचुरा रसणामद्धरसाणा २४
मंगल हाथ में लेकर वह प्रीतिभाव से राजा के समीप पहुँची। दुःस्थितों के मित्र, परकल्याण से युक्त विश्वगुरु के पुत्र, कमलनयन, उत्तम सत्त्ववाले, गुरुजनों के भक्त, विवेकशील, भेद को जाननेवाले, दानकर्ता, संग्राम करनेवाले, दुष्टकुल के लिए प्रचण्ड, दण्ड का प्रदर्शन करनेवाले, कान्ति और लक्ष्मी के स्वामी, रमणियों के द्वारा काम्य, प्रकटनाम, लज्जा को श्री से रहित भरत को उसने देखा। फिर भक्ति से भरी हुई कुसुम हाथ में लिये हुए, स्तोत्रों की वाणी में प्रणाम करते हुए, आशीर्वाद देते हुए उस स्त्री ने
घत्ता-राजा के सिर पर अमृत से भरा हुआ कलश इस प्रकार उड़ेल दिया मानो पश्चिम दिशा में स्थित
चन्द्रमा पर पूर्णिमा ने कलश उड़ेल दिया हो॥१०॥
११ सैन्य को आनन्द देनेवाला कड़ा हाथ में, और हाथ जोड़कर सिर पर मुकुट रख दिया। नीहार के समान सुन्दर हार और माणिक्यों का ब्रह्मसूत्र हिमवन्त पर्वत की शिखरेश्वरी देवी गंगा नदी ने दिया। जिस प्रकार ब्रह्मसूत्र ब्रह्मपुत्र को शोभा देता है, आचार से च्युत दूसरे आदमी को शोभित नहीं होता। दी गयी क्षुद्रघण्टिकाओं से गूंजती हुई करधनी,
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