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मालाडलिट पणायालु के पडिस्कलिन केसरिकसर उल्लूरियड कालाल केमवियारिया किन गरुडादरण एकेामिसिन जमकरण दल बेहिमाणुपुर दर हो किंसिहरुप लोहिन मंदुरहो यि पिठिउजलदि पडिक्कूलिकणव दिर्ह दिहाविसवयपुणिरि स्किमउ कि हालाहल विसरुकिया जंग कणसापुत्रेश्य प्याइयन कोपाल पाइनुयल हो को सुपत्राणियनुभवलो किंमरकर मावियाणडकिं सो काम समशुचिकाचिस जियन खयडिंडिमुकासुपवजियन जेणविमुकुस इदीड समाणुफणिदहा सोममरइरणे जइपरिंदो श्यतेागजिया पुणु कासजियर पिछडिपत्त्रियन दिल्ली परिनियर चित्त्रेणचितियन मतेणमतिय नायियमि चिंतियर रापणन्नियन गंधहिचत्रियन फळेहिचिन सिंचित केणविण्याच वरिता अवलोनवाणु तातम्मिलिडियाई सुरणिटारम दियाई णिनिय दियंता ई परितयक्त्रा चाई सिगाई चंदा लग्नाई बिंदु सचिप्पियई मन्त्राविमपियई तेल्ला दिन लिखाई अरकर ललियाई गाढं विसिहाई सरसाई मिठाई इहाइदिहा। दिय। पढाई आरि साइसरहा श्राणाइंसरट्स्स जो जियइसोजियडू इयरमखयणिय अवर वर १४३
से प्रज्वलित प्रलयाग्नि को किसने छेड़ा है ? सिंह की अयाल को किसने उखाड़ा है ? कालानल को किसने क्षुब्ध किया है? किसने गरुड़ के पंखों का अपहरण किया है? बताओ किसने जमकरण को नष्ट करना चाहा है? किसने देवेन्द्र का मान चूर-चूर किया है, क्या उसने मन्दराचल के शिखर को उलटाया है? किसने अपने हाथ से समुद्र का मन्थन किया है, होते हुए भाग्य को किसने प्रतिकूल कर लिया है? दृष्टि और विषमुख किसने देखा है? किसने हालाहल विष खाया है? विश्व में सूर्य को निस्तेज किसने बनाया? मुझे किसने क्रोध उत्पन्न किया है? आकाशतल के पार कौन जा सका है? अपने बाहुबल के लिए अत्यन्त पर्याप्त कौन है? क्या वह तलवार से आहत होकर भी नहीं मरता? हम नहीं जानते कि क्या वह वज्रमय है? मुझे किसने यह तीर विसर्जित किया? किसका क्षय का नगाड़ा बज उठा है?
धत्ता - जिसने नागेन्द्र के समान अति दीर्घ लम्बा तीर छोड़ा है वह युद्ध में मुझसे मरेगा, भले ही वह देवेन्द्र की शरण में चला जाये ? ।। ३ ।।
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उसने इस प्रकार गर्जना की और फिर अपना काम सम्हाला। उसने वैरी परम्परा का अन्त करनेवाले बाण को देखा, जो पुंखों से पत्रित, दीप्ति से दीप्त, चित्र से चित्रित और मन्त्र से मन्त्रित था, जो हृदय में सोचा गया और राजा (भरत) के द्वारा छोड़ा गया था गन्ध से चर्चित फूलों से अंचित और पुण्यों से संचित उसे कोई नहीं बाँच सका। तब उसमें लिखे हुए सूरसमूह के द्वारा महनीय, दिग्गजों को जीतनेवाले निर्णायक वागेश्वरी देवी के अंगस्वरूप छन्दों में रचित, बिन्दुओं से युक्त मात्राओं से रचित, पंक्तियों में मुड़े हुए सुन्दर, सघन रूप से लिखे गये सरस और मीठे और इष्ट, सुन्दर अक्षरों को उसने देखा। वे हृदय में प्रवेश कर गये। "शत्रुरूपी सरभ के लिए सिंह के समान भरत की आज्ञा से जो जीता है वही जीता है, दूसरे का क्षयकाल शीघ्र आ जाता है,
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