________________
मगृहाहरहो सध्याचवसहमहाहरहो दासगिरिमहलधुलिया पंधरणिहकरलाकुयपु
गिरतलावावरू पिळगाँडला सिद्धसाकयसरशारमणावस्वयम
ससमयदेवपापपारसयसरूरसव वसुहागिरिपर्व
बुगाशापवलवडगावालकिव तनकटेचकव निकठसेन्यथा
ववरचढावमाडपमयरहरूदङ स्चतरउ।
फलप्यासिणग्नुमसरु पहककष्णम् हिमहिलखरू बाउंसहिलासिसनेसोय हरिसविनणंजिणुपरम्परु करिक्षणम् सलणिनिपत काणेविमहासङ्घराश्य
रणसरदाणवरमणापाणपिट गण शिवा LO ससासणखस्तथिठाधता तहिमहिह
होतडुपलाश्चमहाभिपासहि णरलि
भयंकर गुहारूपी घरवाले वृषभ महीधर के निकट आया। पहाड़ की मेखला से व्याप्त धन ऐसा दिखाई देता पुण्य का भार है, मानो अनेक कंकणवाला धरतीरूपी महिला का हाथ है, जो मानो वैद्य की तरह कई है मानो धरती का एक स्तन हो। निर्झर के जलरूपी दूध के प्रवाह को धारण करनेवाला जो भीलों के बच्चों औषधियोंवाला है। जो मानो हरि-सेवित (देवेन्द्र और सिंह) जिनवर हो। हाथियों के दाँतों के मूसलों से के लिए अत्यन्त सुखकर है, कामदेव के समान रतिकारक है, कुपुरुष के प्रसार के समान मदवाला है, प्रवर आहत शरीर जो मानो कोई युद्ध करनेवाला महासुभट हो। देव, दानव और मनुष्यों की पलियों के लिए नृत्य के समान रसमय है, बहुत-से नामों से अलंकृत बहुविवर (बहुछिद्रवाला, बहुत श्रेष्ठ पक्षियोंवाला) प्राणप्रिय जो मानो जिनवर के शासन का स्तम्भ स्थित हो। है। जो मानो वहुविद्रुमोघ (प्रवालौघ, विशिष्ट द्रुमौघ) बाला समुद्र है, जो मानो बहुपुण्य प्रकाशित करनेवाला घत्ता-उस महीधर का तट चारों ओर से
Jain Education Internation
For Private & Personal use only
www.jan287 org