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हियरकरदि गयपछि वृणामसहा सहि
जहिंदी सतहिंगरकरसहिन मोरगिरिंड मणिग महिन चिंतश्लरहा दिन वगुण कर्हिणामु लिहिडमडतण्ठ अष्पष्पटिराम हिंसृत्ति य्य श्मपायव सुमधुत्तिजप वाला विसकेकेा विइ मोहोमुश्तो निमपट रमसरूपकुपर, जोडउपसमुपविवर वड परखड करयललालियर उउँविएडिनसिरि मालिसँग सन्तंगरहारेण मयमत्री सगय भारगलंतला लावयहि चहिये। विममंगल घडसपाही जाविजियचल भ्रमरहिंनि जा छामरणउणिवासिपासिक सत्रुमहर कससंग। वं किमवद। चचलन्नणुक लभ्ययश्वरहो गुणुमेलेचिगमपु पासे पर हो सिकिय आगो मिणिहे परिसुपरम यावणिह णिवडतिमहंतात्रिक वारिकरिणा रमपर लुहितासुतविक पुस्तेंससु वसुमा इर्मिंडलिय जगनिक होविणल झइथनिजहिं किमाउलिहिता मजेदा पक्तिव को गई। जेजेगा रोडलं
मनुष्यों के द्वारा लिखे गये अक्षरों और विगत राजाओं के हजारों नामों से आच्छादित था ॥ ५ ॥
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जहाँ दिखाई देता है वहाँ अक्षर सहित है, वह पर्वत मोक्ष की तरह मुनिगण के द्वारा पूज्य है। बहुगुणी भरत अपने मन में सोचता है कि मेरा नाम कहाँ लिखा जाए ? दूसरे दूसरे राजाओं के द्वारा भोगी गयी इस धूर्त धरती के द्वारा कौन-कौन राजा अतिक्रमित (त्यक्त) नहीं हुए ? तब भी मोहान्ध मेरी मति मूर्च्छित होती है ? केवल एक परमात्मा धन्य हैं जो धरती छोड़कर प्रब्रजित हुए। अनेक राजाओं के हाथों से खिलायी गयी इस लक्ष्मीरूपी वेश्या से मैं प्रबंचित किया गया। सप्तांग राज्यभार से यह आहत है, मदरूपी मदिरा से मत्त और मूर्छा को प्राप्त है। धाराओं में गिरते लीलारूपी जलोंवाले सैकड़ों मंगल घटों से अभिसिंचित हैं, जो चंचल चमरों के द्वारा हवा की जाती हुई जीवित रहती है, जो छत्रों से आच्छादित होने के कारण नहीं देख
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तरथचक्रवर्त वसुदगिरिपूर्व तावनोकिन
पाती, तलवार के जल की कर्कशता को महत्त्व देती है। अंकुश के साथ टेढ़ी चलती है, कुलध्वजों के श्रेष्ठ पदों की जो चंचलता को धारण करती है, और जो गुण छोड़कर दूसरे के पास जाती है। शिक्षित भी पुरुष इस धरती में आसक्त होकर नरकभूमि में जाता हैं। बड़े-बड़े लोग भी शीघ्र किस प्रकार गिर पड़ते हैं जिस प्रकार हथिनी में अनुरक्त हाथी गड्ढे में गिर पड़ता है।
धत्ता- पिता के द्वारा बहुत समय तक भोगी गयी यह फिर पुत्र के साथ सुखपूर्वक रहती है। यह धरती वेश्या के समान किसी के भी साथ नहीं जाती ॥ ६ ॥
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जहाँ एक नख के लिए भी स्थान नहीं है, वहाँ यहाँ मैं अपना नाम कहाँ लिखूँ ? मेरे जैसे राजा को कौन गिनेगा, जो जो राजा जा चुके हैं, उन्हें पुरोहित कहता है।
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