________________
त्रिस कलसम्मारिकणियुण्ठेि खयरीकरखाणारणरणि कळससलालहिंसपुरुपिठक
सपपकिं किलणि घसा कल किसरहिं गायबणपिया सिहणाहचलिफा लियारसरलारहासारठाणवितसरासरणियलाश्वतवडतलधरणियले एक्वंपन कसमावासियल साहासाबावासियत बडदाराहसतानाशरागवडदसदासताडि
सरथकवनि कउषाणुसन्ध चपकवनमाहि याक्रमाला
कहीं पर यक्षणियों की ध्वनिलहरी सुनाई देती है, कहीं पर विद्याधरी के हाथों की वीणा रुनझुन कर रही है। कहीं पर भ्रमरकुलों के द्वारा गुंजन किया जा रहा है, और कहीं पर शुक 'किं किं बोल रहा है।
घत्ता-कहीं पर किन्नरियों के द्वारा कानों को प्रिय लगनवाला नाग, नर और सुरलोक में श्रेष्ठ ऋषभनाथ चरित गाया जा रहा है।॥१॥
जहाँ सुर-असुरों की रति शृंखलाएँ निक्षिप्त हैं ऐसे हिमवन्त के कूटतल के धरातल पर नबचम्पक कुसुमों से सुवासित छह अंगोबाले सैन्य को ठहरा दिया गया। बहुत-सो रस्सियों से तम्बू ठोक दिये गये, हजारों युद्धपटह बजा दिये गये।
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jaine2810g