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सिंधुनदी तटेल रचना।
हदीस इसेल हलिका एगडे महिसी इदयाहाघनं गाणामहिरुहरु हरस हर कळक
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लिकिलियां वापर कचरा सारसई (कळवता वसई काखारिय शिरई कजलसरियश्कदर कळवी पियवेल्ली हलई दिटलतरणा हलई क
हरिणाई ललियाई पुणु गोरी गेम होवलियाई कछ इरिणहरुक्चत्त्रियाई करिमुनियमो
शैल के स्थल में कानन इस प्रकार दिखाई देता है मानो महिषी के दूध के समान साहाघन (शाखाओं और दुग्ध-धारा से सघन ) है, कहीं पर नाना वृक्षों के फलरस को चखनेवाले वानर किलकारियाँ भर रहे हैं, कहीं सारस रति में रक्त हैं, कहीं तपस्वी तप से सन्तप्त हैं, कहीं निर्झर झर झर बह रहे हैं, कहीं गुफाएँ जल से
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भरी हुई हैं, कहीं झुके हुए बेलफल हैं जो भीलों के द्वारा भग्न होते हुए दिखाई देते हैं, कहीं हरिण चौकड़ी भर रहे हैं, फिर गौरी के गीत से मुड़ते हैं, कहीं पर सिंह के नखों से उखाड़े गये मोती हाथियों के गण्डस्थलों से उछल रहे हैं।
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