________________
साहविमच्छरालगंजाबिनापतोरसिंधुदयणचनिन परिमर्वचपराधजावहिवाध्य सिंधता
डाराता वद्विाद
वयाद वदेह।
नसा
सरिसर सिधुनदीपरि
धुडा मिधुदेव्याकिज्यस
वासिणि
परमेस रिराम
सिंधुदेव्यासस्यक जिहाद लेविक
ऊनाश्तेटदेश लसविर दहाल
सद्दा सणाषा सका ।
दवट्या जलभरपया अहिसिववि
आयुसमग्लेखिकर दिषामालतहास रहाविहाणवपुष्पयनमिनमनटार शानश्यामदाउरागनिसहिमहामारसयपालक
इस प्रकार म्लेच्छराज को साधकर हर्ष से उछलता हुआ वह सिन्धु नदी के किनारे-किनारे फिर से चला। कलश हाथ में लिये हुए प्रशस्तजब राजा हिमवन्त के निकट पहुँचा तब आदरणीय सिन्धु देवी आयी। वह नदी नहीं, दिव्य स्वरूप धारण घत्ता-जलचर ध्वजवाली सिन्धु देवी ने अभिषेक कर दोनों हाथ जोड़कर उसकी स्तुति की। और उस करनेवाली देवी थी, जो परमेश्वरी सिन्धुकूट में निवास करती थी। राजा को देखकर उसे भद्रासन पर बैठाकर भरताधिप के लिए नव पुष्पों पर स्थित मधुकरोंवाली पुष्पमाला अर्पित की॥१२॥
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org