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दिथिपिरपसामियावणारे समाणियामरिदचंदलाविणारय महामहासन्जिसनमारमारस पाहै शबणहिलायदिणसासं वदंतमंदगंधवाहकंपमापी जलमिपोमिणीपजतकंपमायादा अला हिचवलाहलामकेजकेसर तरतियोसरासराविजळकेसरपल्लोइकणतसरीसारसायलमा
बामाआदिनाधव नमारिजाश्करिवटे हतालेदाक्षावर
गावाटरिसाचसादलाउनासहित्यिम्पसमा सिलहिपिसापट णिविणणराणिह मसि विसमाणहामलमरिहाण सिवसिवपयवाणिवारपाखडयो विविदवपाविहिकारिणच
जो मधुओं से लथपथ है, जिसमें धरती की धूल शान्त है, जिसमें इच्छुक प्रजाओं को अपना धन दिया गया घत्ता-वहाँ शिलापर बैठे हुए हृदय में प्रसन्न वह मनुष्य योनि से उदासीन हो गये और सिद्ध के समान है, जो बहती हुई हवा से प्रकम्पमान है, जिसके जलाशयों में कमलिनियों की कोई सीमा नहीं है, जहाँ भ्रमरों शशिबिम्ब के सदृश मल से रहित शिवपदभूमि के लिए उत्सुक हो उठे॥२५॥ से आच्छन्न तथा पराग से युक्त सरोवरों में कौन सुर और असुर नहीं तैरता, जो गंगा के तुषार की तरह शीतल था, ऐसे उस बन को देखकर जितेन्द्रिय ऋषि ऋषभनाथ आकाश के आँगन से उतरकर
विविध पूजा विधियों को करनेवाले
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