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धनरखगजम्मनोणि आईडलणयरिबलासजोणि अपरजिलकंचादामुदामिास विणयाजखमपुरीतिरिम असवजसुमरिसंजयति सक्कउरिजयतावजी विविजयाखमकलचंदलास रविलाससत्रदयालाणवास सुविचित्रमहाधणविद कुडामुवितिकड्यश्सवणडुससिविरिबिमुहावाहणाविसुमुहाउरिनिछु। जॉइणाविमशगाहनउरथक्कचाल तहिसबलखमरहलसामिसाल जायजम्मंग लमजखण गरिफणिणाणिहितकउलवाणाधिनायककापुरहिगुरुका गामकोटि पडिवही या मिरामहो घुश्त्रणा गुदाधिमासंघय सिहस्त्रावली परिसासअलमि विलायधीरयापरउवयावावडादातिधास्था यकाअहवासिमानालगडा गरिसा सद्दपविधरणिदलोणागनावारुपासाएदारजाणिमा वामसट्रीपुराणावलाशाणि मा अहणावारूणाव रिसंघारणा अविय केलासपबिल्यावारुपा विज्ञादितकिल्लिय किलंपट्टणं चारुचूडामणाचदसाससाणावसापुरुसुमलपुरोहिंसगीपुरमेहणाय १३
समविराग से प्रचर विद्याधरों की जन्मभूमि और विलासयोनि आखण्डल नगरी है, दो और हैं अपराजित और स्तुति करनेवाले नमि राजा को धर्म से सम्पत्ति फिर हुई ॥१३॥ काँचीदाम संविनय, नभ और क्षेमंकरी ये तीन नगरियाँ और हैं ; झसइंध, कुसुमपुरी, संजयन्त, शुक्रपुर, जयन्ती,
१४ वैजयन्ती, विजया, क्षेमकर, चन्द्रभारा ( सप्ततल भूमिनिवास), रविभास, सुविचित्र महाधन, चित्रकूट, और भूतलपर ऐसे लोग विरल हैं जो सुधीजनों में रत, दूसरों के उपकार में चेष्टा करनेवाले और धीर होते भी त्रिकूट, वैश्रवणकूट, शशिरविपुरी, विमुखी, वाहिनी, सुमुखीपुरी और नित्योद्योतिनी भी। और उसके बीच हैं. एक या दो। पाताल के राजा नागराज धरणेन्द्र के समान भला आदमी नहीं है। पश्चिम दिशा के मुख से में रथनूपुर चक्रवालपुर है। उसमें समस्त विद्याधरों के स्वामी श्रेष्ठ नमि को नागराज ने उत्सव कर जय-जय प्रारम्भ होनेवाली दक्षिण श्रेणी की पुराणावली को मैं अच्छी तरह जानता हूँ, और उनकी नामावली को कहता मंगल के साथ प्रतिष्ठित कर दिया।
हूँ। अर्जुनी-वारुणी, वैरि-सन्धारिणी, और भी कैलास के पूर्व को बारुणी, विद्युद्दीप्त नगर, गिलगिल पत्ता-नगरों से विभक्त एक-एक नगरी करोड़ों ग्रामों से प्रतिबद्ध थी। इस प्रकार नाभेय ऋषभनाथ की (गिलगित) नगर, चारुचूड़ामणि, चन्द्रमाभूषण, वंशवक्त्र, कुसुमचूलपुर, हंसगर्भ, मेघनामपुर,
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