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रटंकियाश्सरं आवासिङगहणसडंगवख करिदरणपटहल्लुसियजल महिसउलमहकदमि । उंसरु कमायादारदिविन्दलक।
थालुखियायिकश्फुलं पिर यासलदलसंगोमंडलेहिंविण
इतपससमरियाईवयवई मुडाविनाश्काइलकुल समता
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पत्ता-वनश्री अच्छी तरह उजाड़ दी गयी, इस समय जनपद यहाँ निवास करेगा, यह देखकर भरताधिप राजा मानो कुन्दपुष्पों के द्वारा हँस रहा था॥११॥
ढका हुआ था, ऐसे गहन वन में षडंग सेना ठहरा दी गयी। वहाँ जल हाथियों के दाँतों के प्रहार से कलुषित था, सरोवर भैंसों के समूह के मर्दन से कीचड़मय था, वृक्ष काटनेवालों के कुठारों से छिन्न थे। पके फल चख लिये गये, आई पत्ते तोड़ लिये गये, गोमण्डलों के द्वारा घास चर लिया गया, आम्रवन मसल दिये गये, कोकिलकुल उड़ा दिये गये, भय से त्रस्त होकर भील चिल्लाने लगे। कमल तोड़कर छोड़ दिये गये। भ्रमरकुल उड़कर दसों दिशाओं में चले गये। सुन्दर मृगकुल भाग गये, यहाँ-वहाँ सहसा तितर-बितर हो गये। रतिघरों में और नवलताघरों में अनुरक्त नरमिथुन सो रहे थे। राजा के हाथियों ने विन्ध्या के गज को विदीर्ण कर दिया। और गरजते हुए सिंह को सुभटों ने मार डाला।
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुणांलकारवाले इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा रचित और महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का त्रिखण्ड वसुन्धरा प्रसाधक नाम का तेरहवाँ
परिच्छेद समाप्त हुआ॥१३॥
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